आह्मस्फुटसिद्धान्ते अत्रोपपत्तिः --युगसहस्र कल्पः कथं भवतीति प्रदश्यंते एकसप्ततियुगानामेको मनुः=७१ युगः, परं कल्पे चतुर्दश मनवोऽतः १४ मनु=७१युx१४८६४ युः परं मनूनामद्यमध्यावसानसन्धिषु कृतकल इत्युक्तः सन्ध्यासध्यांशाः=कृतयुगचरण४१५ | चतुर्दश मनुषु सन्धयः=१५ = युगx१५ १५८६यु | युगे धर्मचरण:=१० १० ४x युग, कृतयुग = तत:-
ततः १४ मनु+मनुसन्ध्यासन्ध्यांश=&e४यु+६यु= १०००यु-१ कल्पः= ब्रह्मदिनम् एतावता ‘चतुर्युगसहस्र ण ब्रह्मणो दिनमुच्यते’ इति पुराणोक्ती युगसहस्र कल्प इति ब्रह्मगुप्तोक्त चाप्युपपद्यते । सूर्यसिद्धान्ते सूर्यसिद्धान्तकारेण ‘इत्थं युगसह त्रण भूतसंहारकारकः । कल्पो ब्राह्ममहः प्रोक्त ' मित्यनेन, भास्करेणापि स्याद्य गानां सहस्र दिनं वेधसः सोऽपि कल्पः’ इत्यनेन तदेव कथ्यते इति ।। १०। * अब मनुमान और कल्पमान को कहते हैं । हि.भा-इकहतर युगों का एक मनु होता है । चौदह मनु कल्प हैं, मनुश्रों के आदि, मध्य और अन्त में सन्धियां कृतकाल के बराबर हैं इस कारण एक हजार युगों का कल्प होता हैu१०। एक हजार युगों का कल्प क्यों होता है इसकी उपपति । इकहतर युगों का एक मनु होता है परन्तु कल्प में चौदह मनु हैं अत: १४ मनु= ७१ युx१४=&e४ यु . लेकिन मनुषों के श्रदि, मध्य और अन्त में कृतयुग के बराबर सन्धि है इसलिए चौदह मनुसम्बन्धी सन्ध्यासन्ध्यांश= कृतयुगX१५ अतः चौदह मनुसम्बन्धिनी सन्घि=१५ | युग में घमंचरण=१०, कृतयुग में घमंचरण =४ ४युगx १५ ४X यग ६यु इसलिए ‘=कृतयुग १० ह = अतः १४मनु4मनुसन्ध्यासन्ध्यांश=&&४यु+६यु=१०००यु=१कल्प= मह्य दिन, इससे ‘चतुर्युगसहस्र ण ब्रह्मणो दिनमुच्यते यह पुराणोक्त और ‘युगसहस्रम्' यह ब्रह्मगुप्तोषत भी सिद्ध हो गया। सूर्यसिद्धान्त में सूर्यसिद्धान्तकार ’इत्थं युगसहस्र ण भूतसंहारकारकः । कल्पो ब्राह्ममहः प्रोक्तम्, इससे सिद्धान्तशिरोमणि में भास्कराचार्य भ 'स्याद्युगानां सहस्र' दिनं वेधसः सोऽपि ' इससे उसी विषय को कहते हैं । १० ॥ कल्प