३६० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते । अज्य. शं आता है 'ज्या =शङ्कतल.। ग्रहस्थान से क्षितिज धरातल के ऊपर जो लम्ब होता है । वह शकू. है, शक, मूल से उदयास्तसूत्रपर्यन्त शकुंतल है, क्षितिज से ऊपर अहोरात्र वृत्त के दक्षिण जाने से दिन में वह शङ्कुल उदयास्त सूत्र से दक्षिण होता है, क्षितिज से नीचे (रात्रि में) अहोरात्रवृत्त के उत्तर बाने से वह शतल उदयास्त सूत्र से उत्तर होता है, यह विषय गोल के ऊपर स्पष्ट देखने में आता है. सिद्धान्तशेखर में ‘पलज्यया सङ्गणि त' इत्यादि से सं उपपत्ति में लिखित इलोक से श्रीपति तथा सिद्धान्तशिरोमणि में सूद दिवाशङ्कतलं यमाशं” इत्यादि स उपपत्ति में लिखित इलोक खे भास्कराचार्य भी आचा- यक्तानुरूप ही कहते हैं इति ॥६५। इदानीमव्यायोपसंहामह दिग्लम्बाक्षस्वोदयलग्नच्छायादिधूपदिष्टेषु । षट्षष्ट्यार्याणां त्रिप्रश्नाध्यायस्तृतीयोऽयम् ६६॥ ॥ भासष्टायं । मधुसूदन नुनोदितो यस्तिलकः श्रीपृथुनेह जिष्णुजोक्ते । हृदि तं विनिधाय नूतनोऽयं रचितः प्रश्नविधौ सुधाकरेण । इति श्रीकृालुदत्तसूनुसुधाकरद्विवेदिविरचिते ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तनूतनतिलके त्रिप्रश्न। घिकारस्तृतोयः ।।६६। वि. भा.-कथितेषु दिग्ज्ञानलम्बांशाक्षांशस्वदेशोदयमानलग्नच्छायादिसाथ नेषु आर्याछन्दोबद्धषट्षष्टिप्रमितश्लोकैरयं तृतीयस्त्रिप्रश्नाध्यायः समप्स गत इत।।६६। इति ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते त्रिप्ररनाध्यायस्ततीयः हि भा.-पूर्वकथित दिग्ज्ञानलम्बांशअक्षांश–स्वदेशीयराश्युदयमानलग्न-व्यादिर्भ के साधन में विपासठ आर्याछन्द के श्लोकों से यह तीसरा त्रिप्रश्नाष्याय समाप्त क्षुषा ॥६६ इति श्राद्मस्फुटसिद्धान्त में त्रिप्रश्ना नामक तृतीय अध्याय समाप्त हुआ
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