पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५०

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द्दिनजमन्दोच्चगत्या चानुपात्तेन कल्पे मन्दोच्चभगणा: समागच्छन्वीति । अत्र बिम्बकलामानं भूकेन्द्रलग्नकोणमानमस्ति तज्ज्ञानं मापनेन कार्य लम्बनावनतिदर्श- नार्थमियं भूरन्यथा केवलं बिन्दुरेव भूरित्याचार्योक्तादत्र बिन्दुरूपभुवः कल्पने बिम्बकलाकोणामापने न काचिद्धानिरिति ।

अथैषां पातभगणोपपत्तिः

अथैषां वेधगोलीयशरज्ञानतो भगोलीयशरान् ज्ञात्वा तदभावो यत्र भवेत्तत्र गणितागतान् तान् मन्दस्पष्टग्रहान् द्वादशराशिभ्य: शुद्धान् कृत्वा पातो ज्ञेयः । द्वितीयपर्ययेऽप्येवं तत्पातो ज्ञेयस्तदन्तरैस्तद्दिनान्तरैख पूर्ववत्तत्पातभगणा भवन्तीति ||१३||

रवि, बुध और शुक्र की भगणोपपत्ति

'रविभगणा रव्यब्दाः' इस आचार्योक्ति से कल्प में जितने रविभगण होते हैं उतने हो सौर वर्षमान होते हैं, लेकिन कल्पवर्षप्रमाण विदित है इमलिए तत्तुल्य कल्परविभगण मान भी विदित हो गया, बुध और शुक्र के उदयलक्षण में रवि के उदयकाल और अस्तकाल में रवि और बुध के अन्तरांश तथा रवि और शुक्र के अन्तरांश भी प्रत्येक दिन यन्त्रद्वारा जानने चाहिएँ। वे अन्तरांश तीन राशि से अल्प ही आता है। वराहमिहिराचार्य भी 'बृहज्जातक में पूर्वाचार्योक्त वज्रादि योगों के खण्डन में 'पूर्वशास्त्रानुसारेण मया वज्रादयः कृताः । चतुर्थे भवने सूर्याज्ज्ञसितौ भवतः कथम् ।" इत्यादि से रवि के साथ बुध और शुक्र का अन्तर अल्प ही होता है, ऐसा कहते हैं । इसलिए रवि के अतिनिकट (समीप ) रहने के कारण कभी आगे कभी पीछे उनके नौकर की तरह बुध और शुक्र जाते हुए देखे जाते हैं । इसी कारण से बुध और शुक्र के कल्पभगण कल्परविभगण के बराबर ही आचार्यों ने स्वीकार किये हैं ॥

चन्द्रभगण की उपपत्ति

ग्रहवेध के लिए हर तरह से उपयुक्त स्थान में वेधालय बनाना चाहिए । उसमें नाड़ीवृत्त, क्रान्तिवृत्त कदम्बप्रोतवृत्त आदि वृत्तों से युक्त एक गोल यन्त्र बनाना चाहिए । क्रान्तिवृत्त में भगणांश ३६० और राशि-अंश-कला आदि अङ्कित करना तथा नाड़ीवृत्त में दण्ड, पल आदि चिह्नित करना, किन्हीं दो आधारों पर तथा केन्द्र- गत नलिका से उस गोलयन्त्र को खूब दृढ़ कर गोलकेन्द्र में ध्रुवाभिमुख ( ध्रुव की तरफ ) यष्टि को करके रात्रि में उस गोलकेन्द्रगत दृष्टि के द्वारा रेवती तारा को देखने से गोलयन्त्रीय क्रान्ति वृत्त में जहाँ पर परिणत हुई वहीं पर मेषादि चिह्नित करना । तथा गोल केन्द्रगत दृष्टि ही से चन्द्र के वेध करने से गोलयन्त्र में जहाँ परिणत हुए उनके ऊपर गोलयन्त्रीय कदम्ब प्रोतवृत्त ( वेधवृत्त ) करने से वह वृत्त (वेघवृत्त) गोलयन्त्रीय क्रान्तिवृत्त में जहां पर लगता है वही वेधागत स्पष्ट चन्द्र है । मेषादि से उनके जितने राश्यादिमान हैं वही राश्यादि स्पष्टचन्द्र है । इस तरह स्पष्ट- चन्द्र का ज्ञान हो गया, इसी तरह द्वितीय दिन में भी स्पष्टचन्द्र का ज्ञान करना,