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३8 ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते

   इन विदित स्पष्टचन्द्रद्वय से तथा विदित चन्द्रमन्दोच्च से 'स्फुटं ग्रहं मध्यखगं प्रकल्प्य
   कृत्वा फले मन्दचले यथोक्तं इत्यादि से दोनों दिनों के मध्यम चन्द्र जान
   कर दोनों मध्यम चन्द्रों के अन्तर (चन्द्रमध्यमगति) जान लेना. इससे अनुपात करते हैं
   यदि एक दिन में यह चन्द्रमध्यम  पाते हैं तो कल्प कुदिन में क्या इससे कल्प
   चन्द्रभगण मन आते हैं । लेकिन इस उपपति में वेध द्वारा जो स्पष्टचन्द्र लिये
   गये हैं वे वेधगोलीय (दृग्गोलीय या भूपृष्ठस्थान में दृष्टिस्थान रखने से पृष्ठीय
   त्रिज्यागोलीय) हैं, लेकिन भूकैन्द्रिक त्रिज्यागोलीय स्पष्टचन्द्र अपेक्षित है, इसलिए वेध-
   गोलीय स्पष्टचन्द्र गौर भूकंन्द्रिक त्रिज्यागोलीय (भूगर्भगोलीय) स्पष्टचन्द्र का अन्तरा-
   नयन करके वेधगोलीय स्पष्टचन्द्र में उस अन्तर को संस्कार करना तब भूगर्भ-
  गोलीय स्पष्टचन्द्र होते हैं । इसी तरह वेधगोलीय द्वितीय दिन के स्पष्ट चन्द्र से गर्भगोलीय
  स्पष्ट चन्द्र ज्ञात करना, तब इन विदित भूगर्भगोलीय  स्पष्टचन्द्रद्वय से ‘स्फुटं ग्रहं मध्यखगं
  अकल्प्ये' इत्यादि से दोनों दिनों के मध्यम चन्द्र ज्ञात कर अन्तर करने से एक-दिन-सम्बन्धिनी
  चन्द्र-मध्यमगति होती है इससे पूर्ववत् कल्पचन्द्रभगण ज्ञात करना ।
             उपर्युक्त उपपति में वेधगोलीय स्पष्टचन्द्र से भूगर्भगोलीय स्पष्टचन्द्र ज्ञान का
   उल्लेख किया गया है परन्तु वह अवतरण रूप में कहा गया । अब यहां उस का
   साधनप्रकार लिखते हैं । । यहां स्पष्टचन्द्र का प्रसङ्ग है इसलिए दोनों गोलीय
   (वेधगोलीय और भूगर्भगोलीय) स्पष्टचन्द्रों का अन्तरानयन करते हैं परन्तु जिस
   किसी वेघगोलीय स्पष्टग्रह से भूगर्भगोलीय स्पष्टग्रहशान करना हो तो यही अघो-
   लिखित उपपति समभनी चाहिए । वेधगोल में दृष्टिवश परिणत चन्द्रबिम्ब के
   स्पष्टभोग चिह्न (परिणतचन्द्रबिम्बोपरिगतकदम्बश्रोतवृत्त क्रान्तिवृत्त में जहां लगता
   है वह बिन्दु) तदूगोलीय स्पष्टचन्द्र है । इस तरह भूगर्भगोल में भी स्पष्टचन्द्र
    स्थान सभना ।
                         उपपत्ति के लिए परिभाषाएँ
           वेधगोलीय चन्द्रस्थान=स्थान स्थानीय दृग्वृत्त धरातल से कटित भूगर्भगोल
      का प्रदेश । उस गोल का दृग्वृत्त होता है । भूगर्भगोलोय दृग्वृत्त और भूगर्भगोलीय
      क्रान्तिवृत्त के योग बिन्दु =ष, भूगर्भ से ष बिन्दुगत रेख=प संज्ञक । इष्टि-
      स्थान से स्थानगत रेखा=फ संज्ञक । प और फ रेखा समानान्तर हैं (रेखागणित
      एकादशाध्याय युक्ति से), भूगर्भ से तथा दृष्टिस्थान से रेवतीगत रेखाद्वय समानान्तर
      है अत: भूगर्भलग्न कोणमान और दृष्टिस्यानलग्न कोणमान समान हुआ अर्थात्
      भूगर्भगोल (भगोल) में रेवती से ष बिन्दुपर्यन्त चाप वेधगोलीय स्पष्टचन्द्र के बराबर
      हुआ, अर्थात्
                   भगोलीय रेवती से र बिन्दुपर्यन्त= वेधगोलीय रेवती से स्थान पर्यन्त; क्योंकि
      केन्द्रलग्न कोण का मान तत्संमुखचाप होता है । स्थनीयनतांशः = ष बिन्दूपन्न
      नतांश क्योंकि प, और फ रेखा समानान्तर हैं । वंदं ब्रह्मांशु चुंधगोल में मापन
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