ग्रहयुत्यधिकार ५३९ /(प्र'छ' (२ कि.) वर्गान्तर योगान्तर घात के बराबर होता है इसलिए (२ इको. क') Wलसक' =रक. क. को). (*++२ इको. अ. -) : ए+क- (२ इको. क) , '. २ अ. क, इको= परमापक', तथा अ+क'+२ प्रः क . इसी = परमाधिक अ'+क परमापक. परमाधिक दोनों पक्षों में तुल्य जोड़ने से २ इको. क7 २ इको. क = य=अ' ++परमापक. परमाधिक , यतः अ+क = परमाल्पक'+परमाधिक , प्रया २ इको. क क==पाषाराषेर्गामिनी रेखा, अतः परमापक+परमाधिक+२ परमापक. परमाधिक.-(परमापक+परमाधिक) ४ इको. क ४ इको. क =य, इससे पूर्वोक्त सिद्ध हुआ । परमाल्पकणं और परमाचिक करों से उत्पन्न कोण की अर्ष कारिलो रेखा आषार वृत्त व्यास में जहां लगती है वह बिन्दु केन्द्र से कितने अन्तर पर होता है इसका उडर बहुत सुवभवा से होता है इसको विज्ञ लोग स्वयं विचार कर खमसें । अवशिष्ट के लिये विचार करते हैं । <गकघ =<g, <गकच= कच अक्षरेख गष पापार में यहां इमली है । उस बिन्दु से उस रेखा के ऊपर चस्बरूप पूर्णज्या ण होती है उसके वर्ग को लाते हैं। कृच. ज्या पधारलग्न कोणद्य ग, ष है, तब अनुपात से ज्याम=:ाच, तथा ज्याघ क‘ज्य प्र । कच या'— =घच, दोनों का घात करने से या २ = चश', यहां (ख) क्षेत्र को देखिये । याग ज्याघ
पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५५६
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति