ग्रहयुत्य विकारः ५६३ घटिका अधिकदिनगतघटितोऽधिकास्तदा युतिर्गताऽन्यथैष्येति । द्वयोर- न्तरमाद्यसंज्ञक कल्प्यम् । ग्रहविष्टर्घटकाभिः प्रचाल्य पुनरन्तरमन्यसंज्ञ कृत्वाऽतुपातो यद्याद्यान्ययोरन्तरतुल्येनापचयेनेष्टघटिकास्तदाऽऽद्यतुल्येनपचयेन किं फलनाडिकाभिराद्यकालात् पूर्वं पइणद्वान्तरस्या ऽद्यासमापचयादभावो 5तस्तत्र युतिरिति ग्रहगतिशरगत्योवैलक्षण्यादसकृत्कर्म ममुचितं तत्स्वल्पान्तरादाचार्चम्यक्तम् । विजातीययोराद्यान्ययोरन्तरे तयोर्युतिरुत्पद्यते तया तदा भक्ताफल ग्राह्यमिति । सिद्धान्तशेखरे ‘अल्पञ्चखेचरसमुद्गत- नाडिकाभिज्येष्ठं दिनं निहतमल्पदिनेन भक्तस् । लब्ध वृहद्दिनसमुद्गततोऽधिकं चेत् याता तदा युतिरतोऽपरथा च गम्या ।। आद्यस्तदन्तरमभीष्ट घटीफलोन संयुक्तयोरपर- एवमुभावपीमो। गम्यौ गतौ यदि च तद्विवरं हरस्याद्योगोऽन्यथा स्वक घटो निहताद्य राशेः ॥ फलघटीभिरिहःद्य वशेन हि ग्रहयुतिः समलिप्तिककालत:। भवति पूर्वम थोत्तरकालिका गणितदृक् समता विधिनाऽमुना ।" एभिःश्लोकैः श्रीपतिनाऽऽचाय क्तानुरूपमेव सर्वमुक्तमिति ।। २२-२३-२४ ।। अव फुट युति सघन को कहते हैं । हि. भ.जिप्त समन में कदम्व प्रोतीय समलिल्पिक ग्रहद्वय हुए हैं उस समय में स्वदेशीय राश्युदयमानों से उदय लग्न साघन करना, भगोल को घुमाकर दोनों ग्रहों को पूर्वक्षितिजस्थित करके दोनों के उदयलग्न साधन करना, उसके बाद तात्कालिक सग्न और ग्रहोदय लग्न के अन्तर में लग्न से काल साधन की तरह ग्रह की दिन घटी सघन करना, बही यहां दिनोदित घटी समझनी चाहिये । पहले दोनों ग्रहों को दिन-मान घटी लाई हुई है, जिस ग्रह के दिन प्रमाण प्रस्प है उसकी दिनगत चटी ऊनदिनदित धटी कहलाती है और बिस ग्रह के दिन प्रमाण अधिक है उसी दिनगत घटी अधिक दिनोदित धटी कहलाती है अल्प दिन प्रमाण कनदिन प्रमाण और अधिक दिन प्रमाण अघिक दिन यह आचार्य का मुफ़्त है, अघिक दिन को ऊनदिनोदित से गुणा कर उन दिन से भाग देने से जो लब्ध हो वह यदि अधिक दिनोदित से अधिक हो तो युति गत समझनी चाहिये, यदि न्यून हो तो युति एष्य समझनी चाहिये । सतभ घटी लौर अधिक दिनोदित घटी का अन्तर प्राच संज्ञक है, एवं इष्टघटी कल करके ऊन और युत दोनों ग्रह अन्य संस्रक हैं, अतद्युति में गत और एष्य युति में एष्य इष्टघटी मानकर इस से दोनों ग्रहों को लन देकर दोनों ग्रहों के उदयलग्न आदि से दोनों की गतयौ लाकर ‘दिनदित युलिताख़इत्यादि से पुनः अन्तर साधन करना उसको अन्य संज्ञक समझना । यदि दोनों प्रन्तर से गत वा एष्य युति हो तो इष्ट गुणित आद्यको आब और अन्य के अन्तर से भाग देने से ऊस घटी होती है वह आधबस से समलिप्तिक काल से उत वा एष्य होती है, अन्यथा अदि एक से सतयुबि हो और दूसरे से एष्य युति हो तो पृष्ठ और अन्य डे कोष से भाग देने यो त घटी बनी चाहिये इति ।।
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