एकवर्णसमीकरण बीजम् १२०९ = ४ गु ( गु य'+गु य ) + गु = गु' + ४ गु व्य एतेनाचार्योक्त तथा चतुराहतवर्गे समै रूपैः पक्षद्वयं गुणयेत् । अव्यक्तवर्णरूपैर्युक्तौ पक्षौ ततो मूलमिति श्रीधराचार्योक्तसूत्रं चोपपद्यत इति ॥ ४४ ॥ । अब वर्गसमीकरण को कहते हैं । हि- भा.--जिस पक्ष में अव्यक्त और अव्यक्त वगं घटाते हैं उससे इतर पक्ष में रूप को घटाना चाहिये । इस तरह एक पक्ष में अव्यक्तवर्ग और अव्यक्त होता है, इतर पक्ष में रूप होते हैं, वहां अव्यक्त मान ज्ञान कैसे होता है उसके लिए कहते हैं । चतुर्गुणित अव्यक्त वर्ग के रूप से दोनों पक्ष को गुणा.हें। दोनों पक्षों में अव्यक्त वर्ग रूप को जोड़कर दोनों पक्ष का मूल लें। तब अन्योन्य पक्षानयन भागादि क्रिया करने पर श्रब्यक्त राशि मन आ जाता है । उपपत्ति । कल्पना करते हैं य.गु+य . गु=व्य दोनों पक्षों को गु भाग देने से य'+य. छ == पुनः दोनों पक्षों में शु इसका वर्ग जोड़ने से अवश्य ही अव्यक्त पक्ष मूलद होता है। २ श्रे ‘द्वयोर्दूयोश्चाभिहति द्विनिघ्नीं' इत्यादि से, अतः य'+य.गुं+- शु’ =ग्र'+४ गु . व्य इन दोनों को वर्गीक से गुणा करने से वर्गत्व नहीं हटता है इसलिए चतुर्गुणित गुणबर्ग से गुणा करने से ४ गृ. य'+४ गु गुय+गु'=भु'+४ गु. व्य=४ गु (गु. य' गु. य)+ऍ=Q* +४ गु . व्य, इससे आचार्योंक्त तथा ‘चतुराहतवर्गसमै रूपैः पक्षद्वयं गुणयेत्’ इत्यादि श्रीधरा चार्य सूत्र भी उपपन्न हुआ इति ।। ४४ ।। इदानीं प्रकारान्तरेण वर्गसमीकरणेऽव्यक्तमानमानयति वर्गाहतरूपाणामव्यक्तार्धकृतिसंयुतानां यत् । पदमव्यक्ताङ्गनं तद्वर्णविभक्तमव्यक्तः ।४५।। सु० भा०--वर्गेणाव्यक्तवर्गगुणकेन हतानां रूपाणां किंविशिष्टानामव्यक्तार्थ कृतिसंयुतानामव्यक्तगुणकाञ्चवर्गसहितानां यत् पदं तदव्यक्तगुणकाधनं तदव्यक्त- वर्गगुणकविभक्तमव्यक्तोऽव्यक्तमानं स्यादिति । अत्रोपपत्तिः । चतुभिरपवत्यै पूर्वसूत्रविचिना स्फुटा ।। ४५ ।।
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