पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/१२५

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१२१६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते एवमेवावमावशेषतः क्रिया कार्या तदा ऽवमशेषज्ञानं भवेत् । अत्र यदि रूपत्रयतो ऽधिशेषस्यावमशेषस्य वा चतुर्थाशः शोध्यते शेषश्च धनात्मकोऽपेक्षितस्तद द्वितीयमानमेव ग्राह्यम् । ततोऽधिशेषादवमशेषाच्च कुट्टकेन कल्पगतानयनं स्फुटं मेवेति ।। ५० ।। इत्येकवर्णसमीकरणम् अब अन्य प्रश्न को कहते हैं । हि. भा.-अधिमास शेष चतुर्थांश में से तीन घटाकर वर्ग करते हैं वह अधिश ष के बराबर होता है वा अवमशेष चतुर्थांश में से तीन घटाकर वर्ग करते हैं वह अवमशेष के बराबर कब होता है इति । उपपत्ति । कल्पना करते हैं अधिमास शेष प्रमाण = य, तब प्रश्नानुसार =अचि =य=( य - १२ );= य-२४ य+*१४४ =य छेदगम से य. १६ २४ य+१४४== १६ य समशोधन से य' -–-४० य=~~ १४४ दोनों पक्षों में ४०० जोड़ने से य’–-४० य +४०० = = ४०० - १४४ मूलग्रहण से य – २०== अतः = १६ य = २० + १६ अर्थात् य = ३६, य = ४, इसी तरह अवसावशे ष ज्ञान होता है । यहां यदि तीन में से अविशेष के चतुर्थांश वा अवम शेष के चतुर्थांश को घटाते हैं तथा शेष धनात्मक अपेक्षित हो तब द्वितीय मान ही ग्रहण करना चाहिये। तब अविशष अवमशेष से कुट्टक युक्ति से कल्पगतानयन स्फुट ही । है इति ।। ५० ।। इति एक-वर्णा-समीकरण समाप्त हुआ ।