पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/२२१

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति

ब्राह्यस्फुटसिद्धान्ते

             त्रोपपत्तिः ।
  स्रु ग=ग उ=ग होच्च्यम् । ज ज प्रथम द्वितीय जलस्स्थाने । न न प्रथमद्वितीयनरस्थाने । ग क=न ह=न ह=हगोच्च्यम् । ज ज=जलान्तरम्=जलापसृतिः । न न=ह ह=नरान्तर । द्वयोरन्तरम्=न न-- ज ज=न न--(ज न+न ज)= न न--न ज--ज न=ज न--ज न ।
  स्रु ज ज स्रु ह ह सजातीय त्रिभुजयोः क्रमेए स्र ग स्र क बहिलम्बः ।
   स्र क    ह ह    स्र क-स्र ग    क ग    ह ह-ज ज

तेन ----- - ---- --------- = ----- = ----------

   स्रु ग    ज ज     स्र ग       स्र ग      ज ज 
  न न-ज ज               ह स्रो*ज ज
= --------- । ततः स्र ग = ----------- ।
   ज ज                  ज न-ज न
 ततः ग ज उ ज न ह सजातीयजात्ययोः ।
       ज न ज ज               ज न*ज ज
ग ज = ---------- । एवम् ग ज  ----------
       ज न--ज ज              ज न--ज न
  स्रत उपपद्यते ॥ १६ ॥
 वि। भा-- नरेए गुहाग्रप्रतिबिम्बम् जले प्रथम यत्र हष्टम् तत्र नरजलान्तरम् थत्तत् प्रथम नरजलान्तर बोध्य, एवम् नरेए द्वितीय गृहाग्रप्रतिबिम्ब जले यत्र हष्ट तत्र द्वितीय नरजलान्तरम् ग्नेयम् । जलयोरन्तरे जलापसतिभुमिः प्रथमद्वितीय नरजलान्तरयोरन्तरेए भक्ता लब्धिः स्थानद्वये स्थाप्या, एकत्र हष्टचु च्छायेए गुएता गृहोच्छ्तिभवेत् द्वितीयस्थाने नर जलान्तरेए गुरिएता तदा जलाद् ग्रृह-तलपर्यन्तभुमिमानम् भवेदिति ॥