१३३६ इदानीं निरक्षस्वदेशान्तर योजनान्याह । अक्षांशकुपरिधिवधान्मण्डलभागाप्त योजनैर्विषुवत् । नतभागयोजनैरेवमुपरि सूर्योऽन्यदनुपातात् ॥१०॥ सु. भा.-अक्षांशानां भूपरिधेश्च वधात् मण्डलभागैश्चक्रांशैर्भक्ताद्यान्यवा प्तानि तैर्नतभागयोजनैः स्वदेशाद्विषुवन्निरक्षदेशो भवति । एवं जिनाल्पाक्षे देशे खस्वस्तिकोपरि यदा सूर्यो भवति तदा कैर्नतभागयोजनैर्विषुवद् देशो भवति । इत्यन्यच मेरुस्वदेशान्तरयोजनादिज्ञानं तत्तदन्तस्भागतोऽनुपातात् कार्यमिति स्फुटम् । अत्र टीकायां चतुर्वेदाचार्यः ‘कान्यकुब्जेऽक्षभागाः’ २६। ३५' ॥१०॥ वि. भा-अक्षांशभूपरिध्योर्धाताद् भांशैर्भक्ताल्लब्धैर्नतभागयोजनैः स्वदे शान्निरक्षदेशो भवति । विषुवच्छब्देनात्र निरक्षदेशो ज्ञेयः । जिनाल्पाक्षांशे देशे यदा सूर्यः खस्वस्तिकोपरि भवति तदा कैर्नतभागयोजनैर्निरक्षदेशो भवति । अन्यच मेरुस्वदेशान्तरयोजनादिज्ञानं तत्तदन्तरांशतोऽनुपातात्कार्यमिति । यदि भांशैर्भूपरिधियोजनानि लभ्यन्ते तदा स्वदेशीयाक्षांशैः किमित्यनुपातेन लब्धयोजनानि स्वदेशनिरक्षदेशयोरन्तरयोजनानि भवन्ति । कृस्मात् कस्माद्देशा न्निरक्षदेशः कियदन्तरेऽस्तीति ज्ञानार्थ तत्तदेशीयाक्षांशवशेन पूर्वोक्तानुपातः कार्य इति ॥१०॥ अब स्वदेश और निरक्षदेश के अन्तर योजन को कहते हैं। हेि. भा-अक्षांश और भूपरिधियोजन के घात में भांश ३६० से भाग देने से जो लब्धि हो उतने योजन पर स्वदेश से निरक्षदेश होता है। जिनाल्पा (चौबीस से कम) क्षांश देश में जब सूर्य खस्वस्तिक के ऊपर होता है तब कितने नतभाग योजन पर निरक्ष देश होता है। मेरू और स्वदेश का अन्तर योजनादि ज्ञान तत्तद्देश के अन्तररांश (अक्षांश) से करना चाहिये, यदि निरक्ष देश से किसी देश का अन्तर योजन ज्ञान करना हो तो पूर्वोक्त अनुपात से करना चाहिये । यदि साक्ष देश में दो देशों का अन्तर योजन करना हो तो दोनों देशों के अक्षांशान्तर से अनुपात (भांश में भूपरिधि योजन पाते हैं तो अक्षांशान्तर में क्या) द्वारा करना चाहिये। यदि भांश ३६० में भूपरिधि योजन पाते हैं तो स्वदेशीयाक्षांश में क्या इस अनुपात से लब्ध योजन निरक्षदेश और स्वदेश का अन्तरयोजन होता है अर्थात् लब्ध योजनान्तर पर
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