पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/२७२

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स्फुटगति वासना १३६३ मन्दकेन्द्र' वेदितव्यम् । अथ चेषां तत्रैव वास्तवावस्थानमिति यथैतत्तुल्यं केन्द्र तत्रापि भवेत्तथा मन्दप्रतिवृत्ते मेषादिः स्वीकृतः । मध्यस्य यत्रोपलम्भः स एव मन्दस्पष्टोऽतोऽत्रत्यं फलाद्यानयनं समीचीनं तत्संस्कारेण मन्द स्पष्टग्रहोऽपि समी चीनः । अथ चैतेन प्रदशितमार्गेण वास्तवं शीघ्रप्रतिवृत्तं यत्तत्रत्यस्य मन्दस्पष्टग्रह- स्योच्चस्य मेषादेश्च ज्ञानं जातम् । अथात्रवेधं विना ज्ञातव्यस्थितावेव पुनरभीष्ट- बिन्दोः कृतं कक्षावृत्तं वास्तवकक्षावृत्तम् । अत्र मेषादिविन्दुशीघ्रोच्य मन्द स्पष्टग्रहश्च पूर्वोक्तविधिनाऽङ्किताः । शीघ्रप्रतिवृत्ते या स्थितिरागता प्रथमं तथैत्र प्रयोजनमतोऽत्र मन्दस्पष्टादेदयमानत्वात्तत्तुल्या एव ते स्वस्थाने शीघ्रप्रतिवृत्त- संज्ञके यथा भवेयुस्तथा मेषादिकल्पना कृता । प्रतिवृत्ते यो मन्दस्पष्ट विन्दुः ततस्तदुच्चरेखायाः समानान्तरा रेखा यत्र कक्षावृत्ते लगति तथैव तन्मन्दस्पष्ट- समानं खण्डं मेषादितो भवितुमर्हति । भूकेन्द्रात्तत्प्रतिवृत्तीयमन्दस्पष्टग्रहगता कर्णरेखा कक्षावृत्ते यत्र लगति तत्र तदुपलब्धिः । कोटिकर्णरेखयोरन्तरं फलमिति तत्साधनार्थं यान्युपकरणानि तैस्तज्ज्ञानं सुगममिति । २५-२६ ।। अब नीचोच्चवृत्त भी को कहते हैं । हि- भा.- कक्षावृत्त में जहाँ मध्यमग्रह चिन्ह है वही नीचोच्ववृत्त का केन्द्र है। नीचोचवृत्त परिधि में मन्दोच्च से विलोम और शीघ्रोच्च से अनुलोमग्रह भ्रमण करते हैं । जिस प्रकार भूकेन्द्र स्थित द्रष्टा (दर्शक) कक्षा में मध्यम ग्रह के बराबर स्पष्ट ग्रह को नहीं देखते हैं उसी प्रकार स्पष्ट ग्रह और मध्यम ग्रह का अन्तर (फल) मध्यम ग्रह में ऋण वा धन किया जाता है तब स्पष्ट ग्रह होते हैं । अर्थात् समान भूमि में इष्ट बिन्दु को केन्द्र मान कर इष्ट त्रिज्या व्यासर्ब से कक्षावृत्त बनाकर उखको भगणाङ्कित कर मेषादि से उच्च और ग्रह को देखकर चिह्नित करना चाहिये । भूकेन्द्र से उच्चोपरि गत रेखा उच्चरेखा कहलाती हैं । भूकेन्द्र से उच्चरेखा के ऊपर लम्ब रेखा (स्तिर्यक् ख) करनी चाहिये । भूकेन्द्र से उच्च को और उच्चरेखा में अन्त्य फलज्या तुल्य देकर दानाद्र बिन्दु के द्वारा उसी त्रिज्या व्यासार्ध से प्रति वृत्त बनाना चाहिये । इस प्रतिवृत्त में उच्चरेखा ऊध्र्व भाग में जहां लगती है वहां प्रतिवृत्त में उच्च होता है। बहां से प्रतिवृत्त में उच्च भोग विलोम देना चाहिये। वहां से ग्रह को अनुलोम देकर चिह्न कर देना चाहिये । प्रतिवृत्त केन्द्र से उच्च रेखा के ऊपर रेखा लम्ब प्रतिवृत्तीय तिर्यक् रेखा करनी चाहिये । दोनों तिर्यक् रेखाओं का अन्तर सर्वत्र अन्त्यफलज्या तुल्य ही होता है । ग्रह और उच्च का ज्यारूप अन्तर दोज्य (भुजज्या) होती है । ग्रह से प्रतिवृत्तीय तिरंगखा पर्यन्त कोटिज्या होती है। अह से कक्षा मध्यगतिर्यगूखा पर्यंन्त स्फुट कोटि है । भूकेन्द्र से प्रतिवृत्तस्य ग्रह पर्यन्त रेखा कर्ण है । कथं रेखा जहाँ कक्षावृत्त में लगती है वही स्पष्ट ग्रह है । कक्षावृत्त में स्फुट ग्रह और मध्यम ग्रह का अन्तर फल है । मध्यम ग्रह से स्फुट प्रह के आगे रहने से मध्यम ग्रह में उस फल को घन करने से स्फुट ग्रह होते हैं । मध्यम ग्रह से स्फुट ग्रह के पीछे रहने से मध्यम ग्रह में से उस फल को ऋण करने से स्फुट