१३६६ ब्रह्मस्फुटसिद्धान्ते की मेषादिं कल्पना की गयी । वृत्त केन्द्र से तदुपरिगत उच्च रेखा ही यहां की उच्च रेखा है, मेषादि से मन्द प्रतिवृत्तीय समान मध्यमग्रह देकर मन्दकेन्द्र जानना चाहिये । मध्यम ग्रह की उपलठ्धि जहां होती हैं वही मन्द स्पष्ट है इसलिये यहां के फलादियों का आनयन समीचीन ही है उसके संस्कार से मन्द स्पष्ट ग्रह भी समीचीन ही होते हैं । इस प्रर्दाशत मार्ग से वास्तव शीघ्र प्रतिवृत्तीय मन्द स्पष्ट ग्रह-उच्च और मेषादि का ज्ञान हुआ । यहां वेध बिना जानने योग्य स्थिति ही में पुनः अभीष्ट बिन्दु से जो कक्षावृत्त होता है वह वास्तव कक्षा वृत्त है। इसमें मेषादि त्रिन्दु, शीघ्रोच्च और मन्द स्पष्टग्रह पूत्रोंक्त विधि से अङ्कित करना। शीत्र प्रतिवृत्तीय मुन्द स्पष्टं बिन्दु से उच्च रेखा की समानान्तर रेखा कक्षा वृत्त में जहां लगती है वहीं मेषादि से मन्द स्पष्टग्रह के तुल्य खण्ड होता है । केन्द्र से प्रतिवृतीय मन्द स्पष्ट ग्रह गत कर्ण रेखा कक्षा वृत्त में जहां लगती है वहीं पर उसकी उपलब्धि होती है। कोटि रेखा और कर्ण रेखा का अन्तर फल है उसके साधन के लिये जो उपकरण (सामी) हैं । उनसे उसका साधन सुगम ही है इति ॥२५-२६। इदानीं नीचोच्चवृत्तभङ्गया शीघ्रफलं साधयति । कोटिफलं व्यासार्धात् पदयोराद्यन्तयोर्भवत्युपरि । द्वितृतीययोर्यतोऽक्षस्तद्युक्तोनं ततः कोटिः ॥ २७ ॥ कर्णस्तद् भुजफलकृतिसंयोगपदं तदुडता त्रिज्या । भुजफल गुणिताप्तधनुर्गणितेनैवं फलं शीघ्र ॥ २८ ॥ सु. भार--स्पष्टार्थमार्याद्वयं भास्करोक्तभङ्गया ॥।२७-२८ ॥ वि. भा---यत आद्यन्तयोः (प्रथम चतुर्थयोःपदय-व्यासार्धात् (त्रिज्यातः) कोटिफलमुपरि भवति । द्वितीयतृतीयपदयोश्च कोटिफलं त्रिज्यातोऽधो भवति, तस्मात् कारणात् तेन कोटिफलेन युक्त हीनं च व्यासार्ध (त्रिज्यामानं) नीचोच्च वृत्तीया स्फुटा कोटिर्भवति । तस्याः (स्फुटकोटेः) भुजफलस्य वर्गयोगमूलं शीघ्र कणं भवति। त्रिज्या भुजफलेन गुणिता तेन शीघ्रकर्णेन भक्ता लब्धस्य चापं शीघ्र कर्मणि फल (शीघ्रफलं) भवतीति । उ=उच्च । ग्र=पारमाथिको ग्रहः। भू-=भूकेन्द्रम् । म =मध्यमग्रहः। मग्र= शीघ्रान्त्यफलज्या=अंफज्या। भूम=त्रिज्या=त्रेि । ग्रन= शीघ्रभुजफलम्। मन=मुर= कोटिफलम्=कोफ । म केन्द्राच्छीघ्रान्यफलज्या व्यासार्धेन शीघ्र- नीचोच्चवृत्तम् । पय=नीचोच्चवृत्तीय तिर्यगूखा ।
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