स्फुटगति वासना १३७९ बिन्दु है । र= रविबिम्ब केन्द्र । भू–भूकेन्द्र । रस्प= रविव्यासार्धे = रव्या । भूस्पं= भूव्यासार्घ=३ भूव्या, भूर=रविकणं । च= चन्द्रकेन्द्र । भू बिन्दु से स्पर्शरेखा की समाना न्तरा रेख=भूस, च बिन्दु से स्पर्शरेखा की समानान्तरा रेखा=चन सस्प=भूस्पं=३ भूव्या, रस्प–सस्प= ई रव्या-३ भूव्या, च बिन्दु से स्पर्शरेखा के ऊपर लम्बः -६ भूभाव्या रख भूव =नस्प क्षुरस, भूचन दोनों त्रिभुजों के सजातीयत्व से अनुपात करते हैं हैं = भून = (६ रव्या-ई भूव्याचंकणं अस्य ) - अतः - भून =नस्प = ३ भूव्या - {१- ६ भूभाव्या = = चल, द्विगुणित करने से भूव्या ( रव्या- भूव्या) चंक चंक (व्या--भूयन). = भूभाब्यास, इससे आचायॉक्त उपपन्न हुआ । इसी से ‘भूव्यासहीनं रवि बिम्बमिन्दुकणहतं इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित भास्करोक्त सूत्र भी उपपन्न होता है। यह भुभाव्यास चन्द्रकक्षा में नहीं आता है । यह क्षेत्र देखने ही से स्फुट है । अब यहां संस्कृतोपपत्ति में लिखित (ख) क्षेत्र को देखिये । र= रवि विम्बकेन्द्र । भू= केन्द्र, भूर= रविकर्ण रस्प= रविव्यासार्घ=३ रव्या । भूस्प= भूव्यासाधं=है भूव्या, भू बिन्दु से स्पर्शरेखा की समानान्तरा रेखr=भून, भूल = चन्द्रकणं, रन = ३ रव्या - ३ भूव्या, < रनभू = &०, झरन त्रिभुज में अनुपात करते हैं । त्रि (१ रव्या - ३ भूव्या) = ज्या रभून= 'त्रि. ३ रव्या ' . - त्रि. ३ भूव्या चं =ज्या ३ रविं-ज्यारपलं, इसका चाप=चा, स्वयंश में घटाने से नरभू=&०--चा = < बभूसंग, धूलस्य त्रिगुण में अनुपात करते हैं। नि. के मुथा = ज्या < भूलस्प =ज्या चंपलं, इसका चाप=चन्द्रपरम लम्बन= चंपलं, नवत्यंश में घटाने से < लभूस्प । =&०-चपलं, अत: < चमू ~< लभूस्प= & ०- चा - (४० चपलं) = १० चा – ६० + चंपलं=चंपलं-चा = ३ भूभावइससे ‘रवितनुदल जीवा लम्बनस्य ज्ययोना’ इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में लिखित म. म. पण्डित सुधाकर द्विवेदीजी का सूत्र उप पन्न हुआ। इनके प्रकार से वास्तव भूभा बिम्बाधं आता है । यहीं पर ज्या और चाप का -
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