१३८० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते अभेदत्व स्वीकार करने से ३ रवि-रपलं =चा, परन्तु भूभा विम्बाधं=चपलं-चा । अतः चंपलं -(३ रविंध्रपलं) = चंपलं + रपलं हे रवि = भूभाविम्बाधंइससे ‘दिवाकर- निशानाथ परलम्बनसंयुतिः इत्यादि संस्कृतोपपति में लिखित टूरप देशीय का प्रकार उपपन्न होता है। 7१७ एवं यदि स्प, स्प, स्प, स्पं, विरुद्ध स्पर्शरेखायें की जाय तो चन्द्र कक्षा में ल, ल. बिन्दुओं के अन्तर्गत भाग सब किरणों के संयोग के अभाव से प्लान की तरह होता है, अतः वहां चन्द्रकान्ति की मलिनता होती है । अत एव लं भू च कोणमान को भूभाभा ख़िम्बाधं । कल्पना करते हैं, तब र बिम्दु वे स्प, स्प, रेखा की समानान्तर रेखा के ऊपर भ्र बिन्दु से लम्ब = भूम, तब भूम = ३ रव्या + ३ भूव्या, अतः रभूम त्रिभुज में अनुपात से त्रि (रव्या+ई भूव्या ३ )==, ज्या ३ रवि+ज्या रपलंज्यामरभूइसका वाप=चा, नवत्यंश में घटाने से e•- चा = < मधूर, तया भूलस्प, त्रिभुज में अनुपात से त्रि. ३ भूव्या = ज्या < भूलस्प, = ज्या चपलं इसके चाप को नवत्यंश में घटाने से । । I ॥ । । । । &०-चपलं = लभूस्प, अत: < मर+लंभूस्पं,८६०- चा+e ०- चपलं= <रभूल =१८०. –(चा+चंपलं) ।
- १६०ः –{१८० –(चा/चपलं)}
=चा+चंपलं=<चभूल = भूभाभा विम्बाधं, इससे ‘रवितनुदलवा लम्बनस्य ज्ययाऽऽदघा’ इत्यादि संस्कृतोपपति में लिखितममपण्डित सुधाकर द्विवेदीजी का सूत्र i, . . उपपन्न हुआ । यहां पर यदि ज्या और चाप में अभेदत्व स्वीकार किया जाय तो चा== } रवि + रपलं, तब भूभाभा बिम्बाधं=चा+चंपलं=है रवि + रपलं + चंपलं, इससे ‘दिवाकरनिशानाथपरलम्बनसंयुतिः ! रवि विम्बाधं सहिता भूभाभा विस्तृतेर्दलम्” म. म. पण्डित सुधाकर द्विवेदीजी का सूत्र उपपन्न होता है। यहां अन्य विशेष बातें वटेश्वरसिद्धान्त की हमारी टीका में देखनी चाहिये इति ॥ ३३ ॥ इदानीं कलात्मकबिम्बान्याह । तद्वगुणितं व्यासार्धे शशिकर्णहृतं तमः प्रमाणकलाः । एवं त्रिज्यारविशशिविष्कम्भगुणा स्वकर्णहृता ।।३४। सु- भा–स्पष्टार्थम् । ‘सूर्येन्दुभूभातनुयोजनानि त्रिज्याहृतानि' इत्यादि भास्करोक्तमेतदनरूपमेव।