१४४४८ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते काद्यं तथैव तस्मिन् वृत्ते स्थापितं सद्वा येऽशस्ते रविचन्द्रयोरन्तरांशा एव भवन्ति । सूर्यचन्द्रयोरन्तराशा द्वादशभक्तास्तिथयो भवन्तीति स्फुटमेव । केवलं गणितेन तिथ्यानयने सयनचन्द्रांशाः क्रियन्ते ते द्वादशभक्तास्सदा शुक्लप्रतिपदादि- कास्तिथयो भवन्ति । अत्र तु अन्तरांशा आयान्तीति चन्द्रोनसूयशस्थले तदन्तरांशा द्वादशभक्ता इति चन्द्रतो रविपर्यन्तमर्थाद्रविचन्द्रयोः पुनयगात्मकमावास्यापर्यं न्तं तिथयो भवन्ति ता एव भोग्यास्तिथय इति । अत्र लल्लश्च- “शकटाकृतियष्टिभ्यां विद्ध वा रविशीतगू तदवलम्बे । भगणांशके वृत्ते मुक्त वा संलक्षयेत् स्थाने । अन्तरमनयोर्भागा हि सूर्यंशशिनोदिवाकरन्निभक्ताः। तिथयः शुक्ले याताः कृष्णे शेषाः फलं भवति ।” इत्येतदनुरूपमेव श्रीपत्युक्तमिति ।२४-२५।। अब यष्टि यन्त्र द्वारा बेध से रवि और चन्द्र के अन्तरांशानयन को कहते हैं । हि. भा.- समान पृथिवी में यष्टि व्यासrधं से वृत्त बनाकर चक्रांश से अङ्कित कर उसको केन्द्रगत कील करना चाहिये । कीलगत वृत्त के व्यासध तुल्य दो यष्टि करना, कील में दोनों यष्टियों के मूल को मिलाकर रखना चाहिये । उन मूल मिलित यष्टिद्वय से मूलस्य दृष्टि द्वारा एक ही समय में एक एक यष्टघग्रगत सूर्य और चन्द्र को यट्घ प्रगत सूत्र से वेध करना चहिये । वह यष्टघग्रगत सूत्र रवि और चन्द्र को अन्तरांश पूर्णज्या होती है । अतएव उस पूर्णज्या से क्षितिज वृत्त में जो चाप होता है वह रवि और चन्द्र का अन्तरांश होता है । उस अन्तरांश को बारह से भाग देने से तिथि होती है। सिद्धान्तशेखर में “वृत्ते चक्रलवांछितेऽत्र शकटाकारं शलाकाद्वयं" इत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित श्लोक के अनुसार श्रीपति कहते हैं । इस श्लोक का अर्थ यह है भगणाङ्कित वृत्त में शकटाकार मूल में मिली हुई दो यष्टियों से सूर्य और चन्द्र को वेध करना अर्थात् दोनों यष्टियों के मूल मिलाकर मूलस्थ दृष्टि से यष्टिद्वय द्वारा यष्टधग्रगत सूर्य और चन्द्र को वेध करना चाहिये। यष्टधग्रगत रवि और चन्द्र से लम्ब गिराना चाहिये । परिधि में लस्बान्तर के जितने अंश हैं उनको वारह से भाग देने से शुक्लपक्ष में गत तिथि होती है । कृष्णपक्ष में भोग्य (अवशिष्ट) तिथि होती है इति । उपपत्ति । मूल में मिली हुई दो यष्टियों से सूर्य और चन्द्र को वेध करना चाहिये, वेध करने से यष्टयग्रगत सूर्य और चन्द्र से लम्ब गिराने से लिखित वृत्त में लम्बान्तर के जितने अंश हैं वे सूर्य और चन्द्र के अन्तरांश होते हैं । उनको बारह से भाग देने से तिथि होती हैं । केवल गणित से तिथि साधन में चन्द्र में सूर्य को घटाने से जो अन्तरांश होता है उस को बारह से
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