१४७४ ब्रह्मस्फुटसिद्धान्ते छिद्र करने के प्रकार कहते हैं। तुल्या यवाम्यां कथिताऽत्र गुञ्जा, दशार्ध गुञ्जं प्रवदन्ति माषस्” इस लक्षण से तृतीयांश सहित तीन माषा से निमत चार अंगुल सुवर्णं शलाका से विड (भदित) पूर्वकथित घटी यन्त्र रूप पात्र जल से एक दण्ड में पूर्ण होता है । यहां लल्लाचार्याक्त है "दशभिः शुल्बस्य पलैः पात्र कलशार्घसन्निभं घटितम्" इत्यादि विशान भाष्य में लिखित श्लोकों का अनुवाद श्रीपति ने 'शुल्बस्य दिग्भिर्थिहितं’ इत्यादि से किया है । भास्कराचार्य के गोलाध्याय में "घटदल रूपा घटिता धटिका तानी तलेऽपृथुच्छिद्रा’ इत्यादि दशभिः शुल्बस्य पलैः इत्यादि घटी लक्षण जो किसी ने किया है वह युक्ति शून्य और दुर्घट है इसलिये वह उपेक्षा के योग्य है । इष्ट प्रमाण आकार छिद्र वाला पात्र घटी संज्ञक स्वीकार किया गया है । यदि चुनिश (अहोरात्र) निमज्जन संख्या में छत्तीस सौ ३६०० पल पाते हैं तो एक निमज्जन में क्या इस रीति से घटी यन्त्र प्रमाण निरूपण किया है । लल्ल और श्रीपति आदि आचायक्ति से साठ पल में जल से भरने योग्य घटीयन्त्र के निर्माण को युक्ति शून्य और दुर्घट जो कहते हैं तो समीचान ही है' इति ॥४१॥ इदानों कपालमन्त्रमाह । मध्याद्य स्वनतशैः कपालकं दिक्स्थ सूत्रमध्याग्रात् । व्यस्तोन्नतांश विवरे सूर्येक्यापाततो नाडघः॥४२॥ सु. भा-मध्याद्यस्वनताँशैः कपालकं कपालयन्त्रं भवति । क्षिति- जानुकारं दिगर्छितं फलके वृत्तं विरचय्य इष्टदिने द्यज्याचरज्यादेना प्रत्यंशं नतांशं प्रकल्प्योन्नतघटिका मध्यनताँशावधि प्रसाध्य व्यस्तकपाले ता घटिकाः स्वस्वनतांशाग्रे वृत्तपालावंक्याः। एवं कपालयन्त्रं भवति । इष्टकाले दृग्मण्डलाकारे धृते कपालयन्त्रे केन्द्रस्थकीलच्छायानुसारि केन्द्रगतं सूत्रं यत्र परि धौ लगति तत्राझिता नाडय इष्टघटिका भवन्ति । एवं दिक्स्थसूत्रमध्याग्रात् सूत्रैक्यापाततः सूत्रभयोर्युदैक्यं तस्यापाततो वृत्तपरिधौ संयोगतो व्यस्तोन्नताँश विवरे व्यस्तकपालस्थोन्नताँशान्तरे नाडयो भवन्ति गोलयुक्तितः ।।४२॥ वि. भा-मध्याद्यस्वनतरः कपालयन्त्र भवति । फलके दिगङ्कितं क्षितिजानुकारं वृत्तं कृत्वाऽभीष्टदिने घृज्या चंरज्यादिना प्रत्यंशं प्रकल्प्योन्नत घटिका मध्यनतांशावचि साधयित्वा ता घटिका व्यस्तकपाले स्वस्वनतांशाग्रे वृत्त पालावङ्कथाः एवं कपालयन्त्र ’ भवति । इष्टकाले कपालयन्त्रे दृग्मण्डलाकारे धृते केन्द्रस्थकीलछायानुसारि केन्द्रगतं सूत्र वृत्तपरिधौ यत्र लगति तत्राङ्किता नाडघ (१) सूर्यसिद्धान्त में तानपात्रमधविछद्र’ इत्यादि से पूर्व कथित घटी यन्त्रं को ही कपाल यन्त्र कहते हैं ।
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