मानध्यायः १५०७ - रविकर्ण. भूव्या =भूछाया दीर्घव= भूयो । वधत रविकर्ण और चन्द्रकक्षा का योग रव्या-भूव्या बिन्दु=च । भू–भूकेन्द्र । भूच=चन्द्रकर्ण भूयो-भूच =चयो = भूछायादीर्घत्व-चन्द्रकर्णी च बिन्दु से स्पर्श रेखा के ऊपर लम्ब=चल=भूभाब्यासाधं भुबिम्ब स्पर्धा बिन्दु=स्प, भूस्प भूस्प. चयो = भूव्यासार्ध, तब धूपयो, चलयो दोनों त्रिभुजों के सजातीयत्व से अनुपात करते हैं
चल
भूव्याई (-चन्द्रकर्ण=करने भूछायादीर्घत्व) भूभाव्यासार्धद्विगुणित से भूभाब्यास भूव्यास (डायादीर्घत्व-चन्द्रकर्णी) यह भूभाब्यासा चन्द्र कक्षान्तर्गत , लेकिन नहीं भूछायादीर्घत्व प्रता है किन्तु चन्द्रकक्षा से ऊपर आता है यह भूभासाधन क्षेत्र देखने से स्फुट है । तब अनुपात करते है यदि चन्द्रकणं में त्रिज्या पाते हैं तो भूभाविम्ब व्यासार्ध में क्या इस अनुपात से फ्रभाबिम्बाधं कलाज्या आती है इसको द्विगुणित करने से आचायक्त भूभामान कला उसका स्वरूप त्रि, इससे आचायत उपपन्न हुआ । होती है = . भुभाबिम्बव्या लेकिन भूभामानकला साधन में जो स्थूलता है उसको साधनोपपत्ति में देखना चाहिये । इति ॥८-६॥ पुनः प्रकारान्तरेण तत्साधनमाह । रविकर्णहृता त्रिज्या वर्कव्यासान्तराहता शोध्या । त्रिज्या भूव्यासवशत् शशिकर्णहृतात् तमो व्यासः ॥१० सु. भा. -स्पष्टार्थों ॥ अत्रोपपत्तिः । योजनात्मकभाव्यासः= भूव्या= चक (= (रख्या-भूव्या) इयं त्रिज्यागुणा चन्द्रकर्णहृता जाता भूभाबिम्बकलाः = त्रिमूव्या त्रि (भूव्या)उपपन्नं यथोक्तम् ॥|१०॥ | व्या- । अत वि. भा-त्रिज्या भूव्यासोन रविव्यासेन गुणिता रविकर्णेन भक्ता लब्धिः त्रिज्या भूव्यासघातात् चन्द्रकर्णभक्तात् शोध्या तदा भूभाब्यासो भवतीति ॥१०॥