पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/४२८

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संज्ञाध्यायः १५१७ इत्यनेन श्री पतिना, सिद्धान्तशिरोमणौ “लङ्कानगर्यामुदयाच्च भानोस्तस्यैव वारे प्रथमं वभूव । मधोः सिताददनमासवर्दी युगादिकानां युगपत्प्रवृत्तिः । इत्यनेन भास्कराचार्येण, अन्येनाप्यनेकाऽऽचार्येण लङ्कायाः प्रधान त्वालङ्कासूर्योदयकालत एव युगाद्यारम्भः कथ्यते, यमकोटिसिद्धपुर रोमक्रपत्तननगराण्यप्रसिद्धानि सन्ति, वहुभिस्तेषां नामान्यपि न श्रुतानि, तस्मादेव कारणात्- बहुभिरेवाचार्योर्लङ्कासूर्योदयकालत एव युगादिप्रवृत्तिः स्वीक्रियते । वस्तुतस्तु-आकाशे मेषादावेव सूर्यस्य स्थितिरतो ग्रहगणिते सर्वत्रैक एवायं सिद्धान्तः सूर्य-चन्द्र-पुलिश-रोमक-वशिष्ट यवनाथैः कृतः । यस्मात्कारणात् देशविशेषाणां भिन्नभिन्नकालग्रहगणिते कोऽपि भेदो न भवत्यतः पूर्वोक्तराचा यैरेक एव सिद्धान्तो विरचितोऽन्यो नेति ।। २-३ ॥ अब सिद्धान्त एक ही है कहते हैं । हि- भा.- लङ्का सूर्योदय काल से एक ही समय में युगादियों की प्रवृति हुई यह किसी का मत है । उसी समय में (लङ्कोदयकाल ही में) रोमक पत्तन में अथै रात्रिकाल से युगाद्यारम्भ हुआ यह अन्य प्राचार्य का मत है । उसी समय में सिखपुर में सूर्यास्त काल से युगादियों की प्रवृत्ति हुई यह किसी दूसरे आचार्यों का मत है । उसी समय में यमकोटि पुरी में दिनार्ध काल से युगादियों की प्रवृत्ति हुई यह किसी अन्य आचार्यों का मत है । सिद्धान्त शिरोमणि में लझ कुमध्ये यमकोटिरस्याः प्राक्पश्चिमे रोमक पत्तनं च' इत्यादि भास्करा चापें कथित पुरों के निवेश की स्थिति से और गोल रिथति देखने से आगे ‘लङ्कापुरेऽर्कस्य यदोदयः स्यात्तदा दिनार्ध यमकोटि पुर्याम्' इत्यादि भास्करोक्त है अर्थात् जब लङ्का में सूर्योदय हुआ उसी समय यमकोटि पुरी में दिनार्ध होता है, सिद्धपुर में अस्तकाल होता है, और रोमकपत्तन में रायचं होता है, इसलिये लसूर्योदय काल में-यम कोटि दिनार्ध काल में सिद्धपुर के अस्तकाल में रोमक पत्तन में अर्धरात्रि काल में एक ही समय में युगादि प्रवृत्ति हुई इस कथन में कोई भी दोष नहीं है । तथापि सिद्धान्त शेखर में ‘मधुसित प्रतिपद् दिवसादितो रविदिने दिनमासयुगादयः इत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित श्रीपत्युक्ति से सिद्धान्त शिरोमणि में लङ्कांनगर्यामुदयाच्च भानोस्तस्यैव वारे प्रथमं बभूव’ इत्यादि भास्करोक्ति से और अनेक आचायों के कथन के अनुसार प्रधाननगरी लङ्का के सूर्योदय काल ही से युगाद्यारम्भ माना जाता है । यमकोटिसिद्धपुर रोमकपत्तन नगर अप्रसिद्ध है, बहुत लोग उनके नाम भी नहीं जानते हैं लंका को आबाल वृद सब जाते हैं, इसीलिये बहुत से आचार्यों ने लङ्का में सूर्योदय काल ही से युगादि प्रवृति को स्वीकार किया है ।