१५६६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते उपपति । ६ उका यदि दिनार्धतुल्य उन्नतकाल में नवति (e०) भाग मिलता है तो उन्नतकाल में क्या इस अनुपात से जो फल भाग हो उसको षष्टि (६०) से गुणकर कला होती हैं । उसको ३० उका ४६० खखनव (३००) से भाग देने से उसका स्वरूप = दिक xe०० = दिक यहां लब्ध संख्यक ज्या खण्डों का योग स्थूल इष्टान्त्या होती है। इस पर से उलटे दिक x त्रि अनुपात से इष्टकणं = । इससे उपपन्न हुआ । E ------------ इदानीमिष्टकर्णत उन्नतकालमाह । दिनदलकर्णे त्रिभज्यागुणे श्रवणोद्धते फलस्य धनुः। द्यदलगुणं तिथिभक्त विनगतशेषासवः क्रमशः ॥ ६६ ॥ सु.भा.-घनुदिनार्धगुणं पञ्चदशभक्त फल क्रमशः पूर्वापरकपालयोदिनग तशेषासवो भवन्ति । शेषं स्पष्टार्थम् । ६०X ६० पूर्व प्रकारवैपरीत्येन धनुः =४६°Kउका अतो घटयात्मक उन्नतकाल दिन xध दिद xघ =। अयं ३६० गुणो जातोऽस्वात्मक उन्नत कालः=' प्रत १५ उपपन्नम् ।६ अब इष्टकणं पर से उन्नतकाल को लाते हैं। हि मा.दिनार्ध कर्ण को त्रिज्या से गुणा हैं, कर्ण से भाग हैं, फल जो हो। उसका चाप कर लें, उसको दिनाघं से गुणाकर तिथि (१५) से भाग दें फल क्रम से दिन गत शेषासव होता है । उपपत्ति । (६८) सूत्र के विपरीत क्रम से यहां धनु =e°x°xडका इससे घटयात्मक उन्नतकाल दिदxध । ९०X ६०
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