ध्यानग्रहोपदेशाध्यायः १५७ -- ~~ ~~ f ददXध इसको (३६०) से गुणने पर, उन्नतकाल= । १५ इस युक्ति से (६e) व श्लोक उपपन्न हुआ। इदान ज्यातश्चापानयनमाह । ज्याखण्डोने शेषे गुणिते नवभिः शतैरशुद्धहृते । क्षेष्याणि शुद्धखण्डैर् णितानि शतानि नव चापम् ॥ ७० ॥ सु. भा.-ज्यामाने ज्याखण्डेः १५ सूत्र पठितैरूने शेषे नवशतैगुणितेऽशुद्ध खण्डहृते लब्धौ शुद्धखण्डैः शुद्धखण्डसंख्याभिर् णितानि नवशतानि क्षेप्याणि तदा चापं भवति । अत्रोपपत्तिः। ज्यासाधनवपरीत्येन सुगमा ।।७०।। अब ज्या से चाप साघन को कहते हैं । हि.भा.—यहां (१५) सूत्र में कथित ज्या खण्ड को ज्या मान में से घटाकर-नव- शत (६००) से गुणा हैं, अशुद्ध खण्ड से भाग द , लव्ध शुद्धखण्ड संख्या से गुणा हुत्र नव शत (००) उसमें जोड़ दें तो चाप मान होता है । उपपत्ति । यहां ज्या साधनोपपत्ति के विपरीत (उलट) उपपत्ति द्वारा (७०) वां श्लोक उपपन्न होता है-व्यर्थ बारबार लिखने के प्रयास से क्या लाभ । इदानींमुपसंहारमाह । इति तिथिनक्षत्रदिनमाद्यादिकसिद्धौ ब्रह्मगुप्तेन द्वासप्तत्यार्याणां संक्षिप्तोऽतिस्फुटश्चैषः ॥ ७१ ॥ सु. भू-स्पष्टार्थम् ।।७१॥ हि. भा--इसका अर्थ तो स्पष्ट ही है । इस ग्रन्थ में आचार्यं ब्रह्मगुप्त ने तिथि, नक्षत्र, दिन आदि समस्त विषयों का उल्लेख इन बहत्तर आर्याओं के द्वारा संक्षिप्त रूप से कर दिया है ॥ ७१ ॥ इदानीमयं कस्मै न दातव्य इत्याह । दुर्जनकृतघ्नशञ्प्रतिकंचुककारिणे न दातव्यः । ध्यानग्रहाधिकारो जिष्णु सुतब्रह्मगुप्तकुतः ॥ ७२ ॥
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