एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
१६०८ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते ४८८०६०६८४६६ ६७६१२१३६९३२ २४४०३०३४२३३ ७६१२१३६९३२ २१९६२७३०८०६७ १६५२२४२७३८६४ २४४०३०३४२३३ ७३२०६१०२६६९ १६५२२४२७३८६४. ७३२०६१०२६६६ ५३४३३३०००००)&३५०६८४३६२४४५८१६३०८६१७५००२&३६२ ५३४३३३ ४००७६५४ _३७४०३३१ २६७३२३३ २६७१६६५ १५६८६२४ १०६८६६६ ५००२५८४ ४८०८७ १९३५८७५ १६०२६६९ ३३२८७६८ ३२०५९६८ १२२७७०१ १०६८६६६ १५६०३५६३०८६= भगणदोषम् । २८ १२७२२८५°४६८८ ३१८०७१२६१७२ ४४५२ee७६६४०८ ( ८ + १७८३३३६६४०८ - १ ८ + ङ ५३४३३३००००० ४२७४६६४ स्वल्पान्तर से । , १७८३३३६६४०८ यहां आचार्य ने छन्द के अनुरोष से सुखार्थी (८+) की जगह (८+३) को ग्रहण किया, यह कल्पना की जाती है । यहां ध्यानग्रहोपदेशाध्याय का क्षेप साधन समाप्त हुआ ।