पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/६४

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अभिन्नात्मक-ह. क+(-शे) कुट्टकाध्याय --- उपपत्ति । कल्पना करते हैं अधिक शेष =शे । उसका हर=ह । अल्प शेष =शे, इसका हर

ह जिस तरह अधिक शेष और उसके हर से आलाप घटे वैसे कल्पित राशिमान

ह. क-+-शे इसको अल्प शेष सम्बन्धी हर से भाग देनेसे लब्ध न तद्गुणित हर में शेष जोड़ने से पूर्व राशि के समान हुआ ह. क+-शे= ह. न-+-शे समशोधन आदि करने से न मानं ११५५


८ यहाँ ह, ह इन भाध्य और हर से यदि कुट्टक क्रिया की

जाती है तो जो राशिद्वय होता है उनमें नीचे की राशि ही आचार्य का अग्रान्त है उसको ह इस अल्प शेष हार से भाग देने से शेष क मान होता है ते भाज्य तद् भाजक वर्णमाने' इस भास्करोक्ति से क मान अल्प शेष सम्बन्धी हर से अल्प हुआ । उसको अधिक शेष सम्बन्धी हर से गुणाकर शेष जोड़ने से राशिमान होता है। परम क मान=ह-१ इसको-ह से गुणाकर शे जोड़ने से ह. ह -ह-+शे=ह ह-(ह-शे) । यहाँ प्रश्न के अनुसार ह>शे इसलिये ह-शे यह धनात्मक है । अतः पूर्वागत राशिमान सदा-ह, ह इससे अल्प होगा इसलिये शेष घात तुल्य हर से राशि मान को भाग देने से शेष राशिमान के बराबर ही होता है इति ॥३-५॥ इदानीं विशेषमाह छेदवधस्य द्वियुगं छेद्वधो युगगतं द्वयोरग्रम् । कुट्टाकारेणैव त्र्यादिग्रहयुगगतानयनम् ॥ ६ ॥ सु. भा-छेदबधस्य पूर्वेश्लोकेन सम्बन्धः पूर्वं प्रतिपादितः । द्वियुगं द्वयोग हयोर्योगश्छेदयोर्वधो भवति तथा युगगतमन्तिमयोगाद्यद्गतं तदुद्वयोश्छेदयोरगू शेषं भवति । एवं कुट्टाकारेण त्र्यादिगृहयुगतानयनं कार्यम् । अत्रैतदुक्त भवति । यथैको गृहो दिन चतुस्त्रिशता ऽन्यश्च त्रयोदशदिनैरेकं भगणं भुक्त । तयोरन्तिम युतेर्दशदिनानि व्यतीतानि तदा कल्पात् कियन्ति दिनानि व्यतीतानीति प्रश्ने को राशिश्चतुस्त्रिशद्धतो दशशेषस्त्रयोदशाहृतंश्च दशशेष इति प्रश्नोत्तरेणैवोत्तरसिद्धिः । अत्रागृयोः समत्वादधिकागूहरश्चतुस्त्रिशदेव कल्पितस्ततः पूर्वप्रकारेणागूयोरन्तरं शून्यं गृहीत्वा गुणकार शून्यं प्रकल्प्यागूान्तः शून्यसमो वा ि द्वितीयहारसमस्तदा राशिः=ह, ह+-शे, अयमगृश्छेदवधश्च छेदं इत्येकस्य प्रकल्प्यान्यस्यैक भगण कालस्तद्धरस्तदगूश्च पूर्वशेषसमः=शे, इति प्रकल्प्य पुनः कुट्टाकारेणैव विधिना