ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते ऋणात्मकः क्षेपश्च धनात्मकस्तत्र घनात्मकगुणेन ऋणक्षेपे कुट्टकः कर्तव्य इति । ११७० अत्रोपपत्तिः । भा. गु+-क्षे भा. गु-+-क्ष=हा. ल इ. भा. हा-=इ. भा. हा************(ख) (ख) अत्र समीकरणे (क) समीकरणं विशोध्यते तदा इ. भा. हा (भा. गु+-क्षे)=इ. भा. हा-हा. ल =इ. भा. हा-भा. गु-क्षे=भा (इ. हा -गु)-क्षे=हा (इ. भा-ल) । अत्र यदि इ= १ तदा भा (हा-गु)-क्षे=हा (भा-ल) अतः भा (हा-गु)-क्षे भा—ल अत्र यदि हा-गु=गु । भा-ल भा. ग-क्षे ल तदा ल, लीलावत्यां ‘यदा गतौ लब्धिगुणौ विशोध्यौ स्वतक्ष णाच्छेमितौ तु तौ स्त’ इति भास्करोक्तमप्याचार्योक्त सदृशमेव । अथ भा. गु+-क्षे =हा. ल, उभयत्रापि इ. भा. हा योजनेन भा. गु+क्षे-+ह. भा. हा=हा. ल+इ. भा. हा=भा (गु+इ. हा)+क्षे=हा (ल+इ. भा) अत्र यदि गु+इ. हा=गु, ल-+इ. भा=ल तदा भा. गु-+ क्षे=हा. ले एतावताऽऽचार्योक्तमुपपन्नम् । सिद्धान्त शेखरे “तदुद्धतच्छेदविभाज्यकौ क्रमादभीष्टनिघ्नौ तु गुणाप्तयोः क्षिपेत्” श्रीपत्यु क्तमिदमाचार्योक्तानुरूपमेवेति ॥१३॥ अब स्थिर कुट्टक में विशेष कहते हैं । हिं. भा.-इस तरह पूर्वागत वल्लीस्थ फल में कर्म होता है। विषम फल में इष्ट गुणकार से जो लब्ध हो वह वहां जो धन वा ऋण कथित है वह क्रम से ऋण और धन करना चाहिये । एवं ऋण गुण्य और धन क्षेप को विलोमत्व करना चाहिये । यदि गुणक घन हो और क्षेप ऋण हो वहाँ घनात्मक गुणक और क्षेप से कर्म करना चाहिये । जहां गुणक ऋण हो और क्षेप घन हो वहां धनात्मक गुणक से ऋण क्षेप में कुट्टक करना चाहिये इति । ल. अतः भा. गु-+क्षे=हा. ल ३. भा. हा==इ. भा. हा ******************(ख) (ख) समीकरण में से (क) समीकरण को घटाने से इ. भा. हा-(भा. गु-+क्षे) = इ. भा. हा-हा. ल=इ. भा: हा-भा. गु-क्षे=भा (इ. हा-गु)-क्षे=हा
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