११८० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते हार, विकलाशेष को ऋणक्षेप कल्पना कर कुट्टक विधि से गुणक और लब्धि साधन कर ना, उनमें लब्धि विकला होती है, और गुणक कलाशष होता है । इसके बाद साठ को भाज्य, दृढकुदिन को हार, कलावशष को ऋणक्षेप कल्पना कर कुट्टक से गुणक और लब्धि साधन करना चाहिए, उनमें लॉब्धकला होती है। गुणक प्रश शेष होता है। एवं तीस को भाज्य, दृढ़कुदिन को हार, अंशशेष को ऋणक्षेप कल्पना कर कुट्टक से जो गुणक और लब्धि होती है उनमें लब्धि अंश होता है। गुणक राशिशेष होता है। एवं द्वादश को भाज्य, दृढ़कुदिन को हार, राशिशष को ऋण क्षेप मान कर कुट्टक से लब्धिगत्त राशिमान होता है, गुणक भगणशोष होता है। एवं कल्प भगण को भाज्य, कुदिन को हार, भगणशेष को ऋणात्मक क्षेप क्षेपकल्पना कर कुट्टक से लब्धि गतभगण होता है, गुणक अहर्गण होता है, लीलावती में ‘कल्प्याथ शुद्धिर्विकलावशेषं' इत्यादि भास्करोक्त इसके अनुरूप ही है इति ॥ २२ इदानीमन्यं प्रश्नमाह । राश्यंशकला विकलाशेषात् कथितादभीष्टतो नष्टान् । सु. भा.-अभीष्टतः कथितान्निर्दिष्टात् राशिशेषत् वांऽशशेषात् वा कला शेषादथवा विकलाशेषाश्च यो नष्टान् विकलादीन् तथोपरितनानुपरिशेषान् विक लाशेषतः कलाशेष कलाशेषादंशाशेषमित्यादीन् समध्यमान् मध्यमग्रहसहितान् साधयति स एव कुट्टकज्ञः । निर्दिष्टादेकशेषात् मध्यमग्रहं य आनयति स एव कुट्टकज्ञ इत्यर्थः । अस्योत्तरं पूर्वसूत्रेण स्फुटमपि बालावबोधार्थमग्रे वक्ष्यति वि. भा.– अभीष्टतः कथितान्निर्दिष्टात् राशिशेषादंश शेषाद्वा कलाशेषा द्विकलाशेषाद्वा नष्टान् ( विकलादीन्) उपरितनान् ( उपयुक्तशेषान् ) मध्यम ग्रहसहितान् यः साधयति सः कुट्टकज्ञः । निर्दिष्टादेकशेषान्मध्यग्रहानयनं यः करोति सः कुट्टकज्ञ इति । अस्योत्तरं यद्यपि पूर्वसूत्रेण स्पष्टमप्यस्ति तथाप्याचा येणाऽग्रे कथ्यते ।। २३ ।। अब अन्य प्रश्न को कहते हैं। हेि. भा.- अभीष्ट से कथित राशिशेष से अथवा अंशशष से, कलाशष से अथवा विकलाशेष से विकलादि कौ तथा उपयुक्त शेष मध्य ग्रह सहित को जो व्यक्ति साधन करता है अर्थात् निर्दिष्ट एकशेष सैभध्यम ग्रहानयन करता है वह कुट्टकज्ञ है, यद्यपि इसका उत्तर २२ सूत्र से स्पष्ट है तथापि आचार्य आगे कहते हैं इति ॥ २३ ॥
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