भोजप्रबन्धः अन्यदा रात्रौ राजा धारानगरे विचरन्कस्यचिद्गृहे कामपि कामिनीमुलूखलपरायणां ददर्श । राजा तां तरुणी पूर्णचन्द्राननां सुकुमाराङ्गी विलोक्य तत्करस्थं मुसलं प्राह--'हे मुसल, एतस्याः करपल्लवस्पर्शनापि त्वयि किसलयं नासीत् । तर्हि सर्वथा काष्ठमेव त्वम्' इति । ततो राजा एक चरणं पठति स्म- 'मुसल किसलयं ते तत्क्षणाद्यन्न जातम् । और कभी रात मे धारा नगर में विचरते राजा ने किसी घर में किसी कामिनी को ऊखल में कूटते देखा । उस तरुणी के पूर्ण चंद्रमा के समान मुख और सुकुमार अंगों को देखकर राजा ने उसके हाथ के मूसल से कहा-'हे भूसल, इसके कर पल्लव के स्पर्श से भी यदि तुझ में कोंपल नहीं फूटी तो तू सब प्रकार से काठ ही है। तो राजा ने एक पद पढ़ा-- मूसल, तुझ में यदि फूटी नहीं कोंपल" 1. - ततो राजा प्रातःसभायां समागतं कालिदासंवीक्ष्य 'मुसल किसलयं ते तत्क्षणाद्यन्न जातम्' इति पठित्वा 'सकवे, त्वं चरणत्रयं पठ' इत्युवाच । तदनंतर प्रातः काल सभा में आये कालिदास को देखकर राजा ने 'मूसल, तुझमें यदि फूटी नहीं कोंपल' यह पढ़कर उससे कहा हे सुकवि, अब तीन शेष पद.तुम पढ़ो।' ततः कालिदासः प्राह--- 1:जगतिः विदितमेतत्काष्टमेवासि नूनं तदपि च किल सत्यं कानने वर्धितोऽसिं। नवकुवलयनेत्रीपाणिसङ्गोत्सवेऽस्मि- न्मुसल किसलयं ते तत्क्षणाद्यन्न जातम् ।। २६५ ।। ततो राजा चरणत्रयस्य प्रत्यक्षरं लक्षं ददौ। 'तो कालिदास ने कहा-- निश्चय तू काठ है, जानता है यह सारा जग, यह भी फिर सच कि जंगल में पला है तू, पाणि-संग पाकर भी नवलकमलनयना का मूसल, तुझ में यदि फूटी नहीं कोंपल ! तो राजा ने तीन पदों पर प्रति अक्षर लाख मुद्राएं दीं। .
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