पृष्ठम्:भोजप्रबन्धः (विद्योतिनीव्याख्योपेतः).djvu/१५३

एतत् पृष्ठम् परिष्कृतम् अस्ति
भोजप्रबन्धः


 तो वह बच्चा रोया नहीं और प्रसन्न मुख रहा और वह स्त्री ध्यान में लीन रही । तदनंतर स्वेच्छया स्वामी के जाग उठने पर उसने झट से बच्चे को ले लिया। धर्म की उस परमता को देख आश्चर्य में पड़े नरपति ने कहा-'अरे, मेरे जैसा भाग्य किसका है कि ऐसी पुण्यस्त्रियां मेरे नगर में निवास करती हैं !'

 ततः प्रातः सभायामागत्य सिंहासन उपविष्टो राजा कालिदासं प्राह-सुकवे, महदाश्चर्य मया पूर्वेद्यु रात्रौ दृष्टमस्ति' इत्युक्त्वा राजा पठति-'हुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः' ।

 तत्पश्चात् प्रातः काल सभा में आकर सिंहासन पर बैठे राजा ने कालिदास से कहा--'हे सुकवि, बीती रात मैंने एक बड़ा आश्चर्य देखा है।' यह कहकर राजा ने पढ़ा-'चंदन-लेप-समान सुशीतल आग हो गयी।'

कालिदासस्ततश्चरणत्रयं झटिति पठति-
'सुतं पतन्तं प्रसमीक्ष्य पावके न बोधयामास पतिं पतिव्रता ।
तदाभवत्तत्पतिभक्तिगौरवाद्छुताशनश्चन्दनपङ्कशीतलः' ॥ २६२ ॥
राजा च स्वाभिप्रायमालोक्य विस्मितस्तमालिङ्गय पादयोः पतति स्म।
 तो कालिदास ने झट से श्लोक के शेष तीन चरण पढ़ दिये--
-: ‘वच्चा गिरता देख आग में पतिव्रता ने पति को नहीं जगाया। ..
रखने को पति-भक्ति-मान चंदन-लेप संमान सुशीतल आग हो गयी।

 और अपना अभिप्राय पूर्ण देख राजा ने विस्मित हो उसका आलिंगन किया और चरणों में गिर पड़ा।

  एकदा ग्रीष्मकाले राजान्तःपुरे विचरन्धमतापतप्त आलिङ्गनादिकम- कुर्वस्ताभिः संह सरससंलापाद्युपचारमनुभूय तत्रैव सुप्तः । ततः प्रातरुत्थाय राजासभां प्रविष्टः कुतूहलात्पठति-

'मरुदागमवार्तयापि शून्ये समये जाग्रति सम्प्रवृद्ध एव ।'

 एक वार ग्रीष्म ऋतु में राजा रनिवास में विचर रहा था; ग्रीष्म ऋतु की धूप के ताप से तप्त होने के कारण आलिंगन-आदि न करके वह रानियों से रस पूर्ण वार्तालाप आदि में आनन्द उठाता वहीं सो गया। फिर प्रातःकाल उठकर सभा में पहुँच कर राजा ने कुतूहल के कारण पढ़ा--