तञ्चरित्रं दृष्ट्वा राजा गृहं समागत्य प्रातः सभायां कालिदासमालोक्य
प्राह-'सुकवे, शृणु-
'दिवा काकरूताद्भीता'
ततः कालिदास आह- 'रात्रौ तरति नर्मदाम्' ।
ततस्तुष्टो राजा पुनः प्राह-
'तत्र सन्ति जले ग्राहा'
ततः कविराह-
'मर्मज्ञा सैव सुन्दरी' ।। २६६ ।।
ततो राजा कालिदासस्य पादयोः पतति ।
उसका चरित्र देख घर पहुँच कर राजाने सवरे सभा में कालिदास को
देखकर कहा-'हे सुकवे, सुनो-
'डरती दिन में 'कांव-कांव' से'
तो कालिदासने कहा-
'तैर नर्मदा जाती रात ।' तब संतुष्ट हो राजाने फिर कहा-- 'पानी में हैं मगर वहां तो' तो कवि ने कहा- 'मर्म सुंदरी को सब ज्ञात'
' तो राजा कालिदास के पैरों-पड़ा।
एकदाधारानगरे विचरन्वेश्यावीथ्यांराजा कन्दुकलीलातत्परांतद्भ्रमणवेगेन पादयोः पतितावतंसां काञ्चन सुन्दरीं दृष्ट्वा सभायामाह-- 'कन्दुकं वर्णयन्ते कवयः' इति ।
एक वार धारानगर में वेश्या-गली में घूमते राजा ने कंदुकक्रीड़ा में लीन और उसके घूमने के वेग से जिसके कान का आभूषण पैरों पर गिर गया था, . ऐसी, एक सुंदरी को देखकर सभा में कहा-'कविजन, कंदुक का वर्णन करें।'
तदा भवभूतिराह-