उस घड़े में जल में उत्पन्न होती ध्वनि को सुनकर यह मान लिया कि
सुंदरी के द्वारा पकड़ कर लिये जाते (इस प्रकार आलिंगित ) इस घट की
न ध्वनि रति-समय संुदरी के द्वारा किये जाते कूजन शब्द के समान है
और सभा में जाकर कालिदास ने कहा-'कूजित रति अजित है।'..
कविराह- |
कवि ने कहा-खूब पके, सुदर मुंहवाले, लाल, कमर पर रखे हुए; गले लगे कामिनि के घट का यह कूजित रति कूजित है ।।
तब संतुष्ट होकर राजा ने प्रत्यक्षर लक्ष मुद्राएँ दी और प्रणाम किया ।
एकता नर्मदायां महाह्लदे जालकैरेकः शिलाखण्ड ईषद्भ्रं शिताक्षर: कश्चिद्दृष्टः । परिचिन्तितम्-'इदमत्र लिखितमिव किञ्चिद्भाति । नूनमिदं राजनिकटं नेयम्' इति बुद्ध्या भोजसदसि समानीतम् ।
एक वार नर्मदा की गहरी जलराशि में जाल डालने वाले मछेरों ने घुसे-मिटे अक्षरों वाला एक शिला का खंड देखा। उन्होंने सोचा-यह इस पर कुछ लिखा-सा प्रतीत होता है। निश्चय ही इसे राजा के पास ले जाना उचित है ।' ऐसा निश्चय करके वह शिलाखंड भोज की सभा में ले आये।
तदाकर्ण्य भोजः प्राह-'पूर्व भगवताहनूमता श्रीमद्रामायणं कृतम्। तदत्र ह्रदे प्रक्षेपितमिति श्रुतमस्ति । ततः किमिदं लिखितमित्यवश्यं विचार्यमिति लिपिज्ञानं कार्यम् ।
मछेरों की बात सुनकर भोज ने कहा-'प्राचीन काल में भगवान् हनुमान ने श्रीमद् रामायण की रचना की थी। ऐसा सुना गया है कि उसे उन्होंने यहीं जल राशि में फेंक दिया था। सो यह क्या लिखा है, इस पर अवश्य विचार होना चाहिए और एतदर्थ इसकी लिपि की जानकारी करानी' चाहिए।'