पृष्ठम्:भोजप्रबन्धः (विद्योतिनीव्याख्योपेतः).djvu/१७३

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भोजप्रबन्धः


 चमत्कृत हो राजा ने कहा- हे सुकुमारी तुम्हें लीलादेवी की अनुमति से स्वीकारूँगा।' और उसे धारा नगरी ले जाकर उसी प्रकार स्वीकारा ।

(३६) विलक्षणसमस्यापूर्तिः

 कदाचिद्राजाभिषेके मदनशरपीडिताया मदिराक्ष्याः करतलगलितो.

हेमकलशः सोपानपङ्क्षुि रटन्नव पपात । ततो राजा सभायामागत्य-

कालिदासं प्राह-- सकवे, एनां समस्यां पूरय---'टटंटटटंटटटंटटंटम् ।'

 किसी समय राजा के स्नान के अवसर पर काम बाण से पीड़ित मदमाते नयनों वाली तरुणी की हथेली से छूटा सोने का कलसा सीढ़ियों पर टकराता गिर गया । तो राजा ने सभा में आकर कालिदास से कहा-'हे सुकवि, इस समस्या की पूर्ति करो---'टटंटटटंटटटंटटंटम् ।' . . . ततः कालिदासः प्राह---

राजाभिषेके मदविह्वलाया इस्ताच्च्युतो. हेमघटो युकवत्याः ।।
सोपानमार्गे प्रकरोति शब्दं टटंटटटंटटटंटटंटम् ।। ३१७ ।।
तदा राजा स्वाभिप्रायं ज्ञात्वाक्षरलक्षं ददौ। ..: .
तो कालिदास ने कहा-- .
नृप के नहाते मद विह्वला के कर से छूटा स्वर्णकलश युवति.के, करने
लगा शब्द सुसीढ़ियों पर टटंटटटंटटटंटटटंटटंटम् । ..

 तब राजा ने अपना अभिप्राय समझकर प्रत्यक्षर पर लक्ष मुद्राएँ दीं।

(३२) चौरो भुक्कुण्डः कविः ।

 अन्यदा सिंहासनमलंकुर्वाणे श्रीभोजे कश्चिञ्चौर आरक्षक राजनिकटं नीत । राजा तं दृष्टा 'कोऽयम्' इत्यपृच्छत् । तदा रक्षकः प्राह-- 'देव, अनेन कुम्भिल्लकेन कस्मिंश्चिद्वेश्यागृहे घातपातमार्गेण द्रव्याण्यपहृतानि' इति । तदा राजा प्राह--'अयं दण्डनीयः' इति। .

 अन्य वार श्रोमोज के सिंहासन को सुशोभित करने पर रखवाले एक चोर को राजा के निकट लाये । राजा ने उसे देखकर पूछा--'यह कौन है ?' तो