रखवाला बोला-'महाराज, इस चोर ने एक वेश्या के घर में सेंध के रास्ते
से द्रव्य चुराये हैं ।' तो राजा ने कहा--'इसे दंड दो।'
ततो भुक्कुण्डो नाम चौरः प्राह- |
तो भुक्कुंड नाम का चोर बोला-- |
तदा राजा प्राह--'भो भुक्कुरण्ड, गच्छ गच्छ यथेच्छ विहर।' तो राजा ने कहा--अरे भुक्कुंड, जा भाग, यथेच्छया विहार करता रह।'
(३३ ) कविसत्कार
कदाचिद्भोजो मृगयापर्याकुलो वने विचरन्विश्रमाविष्टहृदयः कञ्चित्तटाकमासाद्य स्थितवान्श्रमात्प्रसुप्तः । ततोऽपरपयोनिधिकुहरं
गते भास्करे- |
कभी मृगया में व्यस्त भोज वन मे विचरण करते हुए विश्राम करने की इच्छा से किसी तालाव पर पहुंच जा बैठा और श्रम के कारण सो गया। तब सूर्य के पश्चिम समुद्र में डूब जाने पर वहीं चमकते चंद्रमा की किरणों के आनंद से परिपूर्ण सुखदायिनी रात राजा को अच्छी लगी।
ततः प्रत्यूषसमये नगरी प्रति प्रस्थितो राजा चरसगिरिनितम्बलम्बमानशशाङ्कबिम्बमवलोक्य सकुतूहल: सभामागत्य तदा समीपस्थान्कवीन्द्रान्निरीक्ष्य समस्यामेकासवदत--'चरमगिरिनितम्बे चन्द्रबिम्बं ललम्बे।'