पृष्ठम्:भोजप्रबन्धः (विद्योतिनीव्याख्योपेतः).djvu/१८२

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भोजप्रबन्धः १७६ कान्तायाश्चारित्र्यवर्णनेन श्लाघनीयोऽसि विशिष्य तत्तद्भावप्रतिभट- वर्णनेन। तब राजा ने उस कविराज से कहा-'हे विद्वान् मल्लिनाथ कवि, आपने अच्छी गाथा रची।' तो कालिदास ने कहा- केवल अच्छी ,गाथा क्या कहते है- देशांतर ( अन्य स्थान ) में पड़ी ( विरहिणी) प्रिया के चरित्र का वर्णन करने से, विशेषरूप में प्रत्येक भाव के विरोधी का वर्णन कर देने से कवि प्रशंसा पाने योग्य है। [टिप्पणी-चंपा का फूल युवती के निर्मल चरित्र का प्रतीक है, जिसके पास इधर-उधर रस के लोम में भनभनाते भौंरे-सदृश विलासी फटक भी नहीं सकते; सर्प चरित्र रूपी धन का प्रहरी है; शिव कामजयी हैं अर्थात् युवती के चित्त में काम-विकार उत्पन्न होते ही मिट जाते है। हनुमान् रावण की वाटिका के विध्वंसक और सीता का समाचार राम तक पहुँचाने वाले हैं, सो वह राक्षसों के बीच रहकर भी अपने चरित्र की रक्षा कर रही हैं--यह संदेश और समाचार हनुमान जी ले जा रहे हैं, इसका प्रतीक हनुमान का चित्र है।] तदा भवभूतिः प्राह-'विशिष्यत इयं गाथा पङ्क्तिकण्ठोद्यानवैरिणो वातात्मजस्य वर्णनात्' इति । तब भवभूति ने कहा-दशकंठ रावण की वाटिका के वैरी पवन पुत्र के वर्णन से यह गाथा विशिष्ट होगयी है। ततः प्रीतेन राज्ञा तस्मै दत्तं सुवर्णानां लक्षम् पञ्च गजाश्च- दश तुरगाव दत्ताः। तव प्रसन्न हो राजा ने उसे लाख-भर सोना, पांच हाथी और दस घोड़े दिये। ततः प्रीतो विद्वान्स्तौति राजानम्-- 'देव भोज तब दानजलौघैः सेयमद्य रजनीति विशङ्के। अन्यथा तदुदितेषु शिलागोभूरुहेषु कथमीदृशदानम् ॥ ३२४ ॥ तब प्रसन्न होकर विद्वान् ने राजा की स्तुति की-- 'हे महाराज भोज, आपके दान रूपी जलप्लावन के कारण आज भी वही प्रलय रात्रि शेष है, ऐसी प्रतीति मुझे हो रही है; अन्यथा (प्रलयरात्रि

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