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भोजप्रबन्धः


 साथ होम की सामग्री भेज ।' सो राजाने यह कह कर बुद्धिसागर को भेज

दिया कि कापालिक ने जो कहा है, वैसा ही सब करो। 

 ततो रात्रौ गूढरूपेण भोजोऽपि तत्र नदीपुलिने नीतः। 'योगिना भोजो जीवितः' इति प्रथा च समभूत् । ततो गजेन्द्रारूढो बन्दिभिः स्तूयमानो , भेरीमृदङ्गादिघोषैर्जगद्वधिरीकुर्वन्पोरामात्यपरिवृतो भोजराजो राजभवनमगात् । राजा च तमालिङ्ग्य रोदिति । भोजोऽपि रुदन्तं मुञ्जं निवोर्यास्तौपीत् । .

 तदनंतर रात में गुप्त रूप से भोज भी नदी तट पर ले जाया गया। 'योगी द्वारा भोज जिला दिया गया है, ऐसी प्रसिद्धि हो गयी । तत्पश्चात् गजराज पर चढ़ा, बंदियों द्वारा प्रशंसित होता, नगाड़े और मृदंग आदि के घोषों से संसार को बहिरा करता, नगरवासियों और मंत्रियों से घिरा भोज राज राजमहल में पहुंचा । राजा उसका आलिंगन करके रोने लगा । भोजने भी रोते हुए मुंज को चुपाकर उसकी स्तुति की।

 ततः सन्तुष्टो राजा निजसिंहासने तस्मिन्निवेशयित्वा छत्रचामराभ्यां भूषयित्वा तस्मै राज्यं ददौ । निजपुत्रेभ्यः प्रत्येकमेकैकं ग्रामं दत्त्वा परमप्रेमास्पदं जयन्तं भोजनिकाशे निवेशयामास । ततः परलोकपरित्राणो मुखोऽपि निजपट्टराज्ञीभिः सह तपोवनभूमि गत्वा परं तपस्तेपे । ततो भोजभूपालश्च देवब्राह्मणप्रसादाद्राज्यं पालयामासः।

इति भोजराजस्य राज्यप्राप्तिप्रवन्धः ।

 तत्पश्चात् संतुष्ट हुए राजा ने अपने उस सिंहासन पर बैठा कर और छत्रचामर ( आदि राज चिह्नों) से सुशोभित कर उसे ( भोज को ) राज्य दे दिया । अपने प्रत्येक पुत्र को एक-एक गाँव देकर अपने सबसे प्रिय जयंत कुमार को राज भोज के निकट रख दिया। तदनंतर परलोक सुधारने की इच्छा करता मुंज भी अपनी पटरानियों सहित तपोवन भूमि में जाकर परम तप करने लगा। उसके बाद देवताओं और ब्राह्मणों के प्रसाद से राजा भोज राज्य का पालन करने लगा।

राजा भोज को राज्य मिलने की कथा समाप्त ।