पृष्ठम्:भोजप्रबन्धः (विद्योतिनीव्याख्योपेतः).djvu/९

पुटमेतत् सुपुष्टितम्

॥ श्रीः ॥

भोजप्रबन्धः

'विद्योतिनी हिन्दीव्याख्योपेतः

(१) भोजराजस्य राज्यप्राप्तिः

 स्वस्ति श्रीमहाराजाधिराजस्य भोजराजस्य प्रवन्धः कथ्यते---

 आदौ धाराराज्ये सिन्धुलसंज्ञो राजा चिरं प्रजाः पर्यपालयत् । तस्य वृद्धत्वे भोज इति पुत्रः समजनि। स यदा पञ्चवार्षिकस्तदा पिता हात्मनो जरां ज्ञात्वा मुख्यामात्यानाहूयानुजं मुञ्जं महाबलमालोक्य पुत्रं च बालं वीक्ष्य विचारयामास-

 मंगल हो । श्री महाराजाधिराज भोजराज की कथा कही जाती है-  प्राचीन काल में सिंधुल नामक राजा बहुत समय तक प्रजा का परिपालन करता रहा । उसके बुढ़ापे में भोज नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। वह जब पाँच वर्ष का था तब पिता ( राजा ) ने अपना बुढ़ापा समझ मुख्य मंत्रियों को बुलाया और अपने छोटे भाई मुंज को महाबली और पुत्र ( भोज ) को बालक देख कर विचार करने लगा।

 'यद्यहं राज्यलक्ष्मीभारधारणसमर्थं सोदरमपहाय राज्यं पुत्राय प्रयच्छामि, तदा लोकापवादः। अथवा बालं मे पुत्रं मुञ्जो राज्यलोभाद्विषादिना मारयिष्यति, तदा दत्तमपि राज्यं वृथा। पुत्रहानिर्वंशोच्छेदश्च ।

 यदि मैं राज्यलक्ष्मी का भार उठाने में समर्थ सगे भाई को छोड़कर (५ वर्ष के ) पुत्र को राज्य दूं तो लोकनिंदा होगी । अथवा मेरे अबोध बालक पुत्र को राज्य लोभ से मुंज विष आदि द्वारा यदि मरवा देगा तो दिया हुआ राज्य भी व्यर्थ हो जायेगा । पुत्र की हानि होगी और वंश का विनाश भी हो जायगा ।