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भूमिका। कुछ गत-वर्षों से रामायण प्राज्ञ-श्रेणी में पाठ्यपुस्तक रूप से नियत की गई है। रामायण के विरुद्ध कोई पुरुष कुछ आक्षेप नहीं कर सकता । कथा इतनी रोचक और शिक्षाप्रद है कि इसके कुछ अंश-जो कि वास्तव में रस्र के समान दीप्तिमान् हैं, और सम्पूर्ण-संस्कृत-साहित्य के सार हैं-छोटे बालकों को अवश्य पढ़ाए जान चाहिएं क्यों कि इन बालकों के आचरण अभी बनाने होते है, और जो कि अभी कुछ शिक्षाप्रद विषयों की आवश्यकता रखते हैं जिनसे कि उनके प्राचार- व्यवहार उच्च बन सके और उनके जीवन प्रादर्शरूप बनें । रामायण हमें संस्कृत काव्य का सव से प्रथम उदाहरण देती है । परन्तु एक प्रश्न उठता है। क्या शेष संस्कृत-साहित्य में ऐसे अन्य विषय अनुपलब्ध हैं जो कि केवल रामायण ही पढ़ाई जाए ? नहीं, कदापि नहीं ! अतः अन्याऽन्य स्थानों से भी कुछ रोचक और शिक्षा-प्रद विषयों का संग्रह करने के लिए प्रयन किया गया है। यह ध्यान रखा गया है कि कोई विषय किसी मत के विरुद्ध न हो । प्रत्येक विषय में कथा के अनुसार भिन्न भिन्न भाग कर दिए गए हैं और उसी प्रकार नाम भी दिए गए हैं। इस पुस्तक में ये विषय हैं:- १. रामवनगमनम् (पृष्ठ १-५६) यह विषय बाल्मीकीय-रामायण से कुछ ही संचित किया गया है । यह हमें एक अद्भुत-रोचक ढंग से इस प्रकार शिक्षा देता है:-(१) पितृभक्ति ( राम का वन को जाना ) (२) वात्सल्य-प्रेम (कौशल्या और दशरथ का विलाप) (३) पतिव्रता-धर्म (सीता का वन को जाना) (४) भ्रातृ-प्रेम ( लक्ष्मण का वन को जाना) (२) प्रजा-प्रेम इत्यादि ( राम का वनवास सुन कर प्रजा का दुःखित होना) २. सीता-हरणम्-(पृष्ठ १७-१०१) यह विषय भी वाल्मीकीय- रामायण से कुछ ही संक्षिप्त किया गया है । यह हमें इस प्रकार शिक्षा देता है:- (१) दारा शब्द का यथार्थत्व (लक्ष्मण प्रति सीता की निर्भर्त्सना) (२) आत्म-त्याग (सीता की रक्षा करते हुए जटायु का रावण के हाथों मारा जाना) (३) पति का स्त्री के लिए प्रेम (राम का विलाप) (४) प्राचीन सभ्यता का उत्कर्ष (यथा पुष्पविमानादि) इत्यादि । ३. हरिश्चन्द्रः-(पृष्ठ ११०-१५८)- यह एक उस राजा की कथा है जिसने सब कुछ त्याग कर दिया। जिसने कि राजपाट ही नहीं, अपनी स्त्री और पुत्र और अपने आप को भी बेच दिया और अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर दिखाई । यह कथा एक प्रसिद्ध कथा है।