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२ । कथा यह कथा अत्यन्त शोक-प्रद तथैव शिक्षा-प्रद भी है । वास्तव में सत्य बोलने का स्वभाव ऐसी ऐसी कथाओं से निर्मित हो सकता है । सत्यवादी पुरुष प्राज- कल दुष्प्राप्य हैं परन्तु अावश्यकता अत्यन्त है । यह तो शिक्षा हुई हरिश्चन्द्र के जीवन से। क्या शव्या का जीवन कम श्लाघनीय है ? वह भी सत्य-व्रत के लिए उसे उत्तेजना देती थी। दक्षिणा का ऋण चुकाने के लिए उसने अपने पति से हठ किया कि मुझे बेच दो और पति के कारण राजमहिषी के स्थान उसने एक साधारण दासी बनना स्वीकार किया । धन्य हैं ऐसी नारिये और पुरुष ! ४. शकुन्तलोपाख्यानम्-(पृष्ठ १४८-१७५) यह कथा पद्मपुराण से उद्धृत की गई है। कालिदास के नाटक अभिज्ञान--शकुन्तला ने इस कथा को और भी प्रसिद्ध किया है । यह कथा महाभारत में भी मिलती है परन्तु यह कालिदास की कथा से कुछ भिन्न है । अत एव महाभारत की कथा छोड़ दी गई है और पद्मपुराण की कथा लिखी गई है । महाभारतीय कथा इससे लगभग दुगनी है। यह कथा अद्भत रोचक और आकर्षण-शनि-युक्त है यह शकुन्तला का अपने पति दुष्यन्त के प्रति निरन्तर, सुदृढ़, अक्षीण प्रेम दिखाती है यद्यपि वह दुष्यन्त से अपमानित और तिरस्कृत भी की गई थी जब कि महर्षि कण्व ने इसे दुष्यन्त पास भेजा था । निश्चय से यह निरादर दुर्वासा के शाप के कारण हुआ था । दुष्यन्त इस में निर्दोष था । जब शाप का अन्त होगया तो हम देखते हैं कि दुष्यन्त को भी अत्यन्त खेद हुा । ५. द्रौपदी चीर हरणम्-(पृष्ठ १७६-२०३)- यह विषय महाभारत से उद्धृत किया गया है । यह महाभारत के युद्ध के मूल-कारणों में से एक मूल- कारण था । यह युद्ध यथार्थ में दौपदी के निरादर और अपमान का, जो कि सभा में यत-क्रीड़ा के अनन्तर किया गया था, बदला था । ६. सावित्री-सत्यवान्– ( पृष्ट २०३-२२२ )-यह कथा महाभारत से उद्ध्त की गई है । यह "भवितव्यता खलु बलवती' के विरुद्ध है और "देवं निहत्य कुरु पौरुपमात्मशक्रया" के समर्थन में है। इस कथा से हमें यह ज्ञात होता है कि सावित्री ने किस प्रकार अपने पति सत्यवान् को, जिसको श्रायु यम ने समाप्त कर दी थी, पुनर्जीवित कर लिया । ७. यक्ष-युधिष्ठिर-संवादः-(पृष्ट २२२-२३२)-यह संवाद महा- भारत से उद्धृत किया गया है । यह संवाद अत्यन्त शिक्षाप्रद है। दो एक उदाहरण दिए जाते हैं:-