पृष्ठम्:यतिराजविजयम्.pdf/184

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श्लोक'fदः नाध्यासः स्वप्रकाशे नापरैः परिभूयन्ते नावैक्षिष्ट सरुष्ट निधाय सर्वैकप नीति निरस्य तिमिरं भानु' निरालम्बनमप्येतदेवम् निर्विकारश्रुतिर्नेह्म निशात निधिश नीतो मयाह्य नेिमामान्त पह्वादाशु समुद्धृत्य प्रकृवार्थीपदवीं प्रविइय पढे त् नन्नयने स्मरामि परब्रह्म प्थानीरफटंक पर ब्रह्मस्व' में प्रस्में परस्पर महान के विहग परस्मादन्यस्मै यपि परिणामपाटलमेिदq परिभवति हि भानुf पाणेिभ्यां प्रतिरुंधती पादाघातकिरीट पादौ जडौ भवति पारे चिरन्तनवच: पीडयमाना हि रक्ष्यम्ने पुरुचा मयाद्य दृष्ट्र शैरन्दरी तिलकयन फैलस्त्येन यथा प्रगल्भेयं लीलापरवश्ी प्रत्यक्षप्रभृतिप्रमाण 1ν अंक - श्लोक - संग्äät » to – ♥ ፳ ) 《 한-이) ( -8) (༦༥ ཡས་མས་ཁ་ 2འི ) ( تم سب--۔ ? } {氏一?) ( %à- ܟ ) ( -88) { 8 - 9 (མཁས་པས་མ་ན ) ( ३-२५) (3 - -, ) ( - ) ( āー&z) (5ーペ?) ( ۔۔۔۔' } ( 49؟ --- : : ) ヌ --R/ (१-२७) (äーゞ%) (A་ལས་ཁང་ ༢ R ) ( - ) ( to ) ( 8---ኛኞ ) { २ १२) ( ما سبب ) (《ーRと) ( ६-२५) ܐ ܪ ܪ ܚ ܐ ) पुट मंख्गा ( Gく) ( १२ ) ( . ) (७६) ( v8 ) (vs. ) ( ७३ } ( ta) ( . ) ( & & ) ( ነጳጳ ) ( ३५ } ( . ) ( ዴW ) ( & & ) ( ६४ } (°3) ( २८ ) ( く) (९३) ( ጻሣላ ) (AR) (Q) ( & & ) { ፍW ) { ፳ሪ ) ( <) ( ( 2) (e)