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भूमिका समस्त भूमण्डल पर नहीं तो भारतवर्ष में तो अवश्य, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र के आदरणीय नाम ने प्रत्येक जर नारी के हृदय में थोड़ा बहुत स्थान प्राप्त कर रखा है। उनके सचरित्र को पढ़ने के लिये सभी का मन सदा उत्सुक रहता है। यूं तो अनेक कवियों ने अपने अपने भावों द्वारा उनका यश गान किया है किन्तु जो रस आदि-कवि श्री. बाल्मीकि जी ने अपनी रामायण में सरल तथा मधुर शब्दों में भर दिया है उसकी तुलना कोई नहीं कर सका। यह हो भी क्यों न ? इन्हो ही ने तो सबसे पहले राम-कथा को काव्य में परिणत किया था । अतः वाल्मीकि जी के ही शब्दों में राम-कथा को पढ़ने को सभी का मन चाहता है। किन्तु साधारण लोग वाल्मीकि समायण जैसे इतने बड़े काव्य को पढ़ने का उत्साह नहीं कर सकते, इस कारण इस क्षति को किसी अंश में पूर्ण करने के लिये में दान स्वल्प' पुस्तक को जनता के सम्मुख उपस्थित करने का साहस करता हूँ। इस में रामचन्द्र की उत्पत्ति से लेकर जन के राज्याभिषेक तक पूरी मूल-कथा वाल्मीकि जी के ही शब्दों में रक्खी हुई है। कहीं कहीं पर रामायण में जो बड़े उत्तम उपदेश भरे हैं उन में से भी कुछ उचित स्थानों में दे दिये हैं । मेरी यह प्रबल इच्छा थी कि मैं उस महाकवि के कुछ और भो उपदेश रत्नों का इस में समावेश करता किन्तु मुझे भय था कि इस से पुस्तक का विस्तार बहुत बढ़ जाता और इस लिखने में जो उद्देश्य या वही चुक जाता।