पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०४८

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एकशततमोऽध्यायः १०२७ ॥३२१ स्वच्छन्दगतयः सिद्धाः सिद्धैश्चान्यैविबोधिताः । एकादशानां रुद्राणां कोटयोऽनेका महात्मनाम् ॥३२० एभिः सह महात्मानो देवदेवो महेश्वरः । भक्तानुकम्पी भगवान्मोदते पार्वतीप्रियः नाहं तेषां रुद्राणां भवस्य च महात्मनः । नानात्वमनुपश्यामि सत्यमेतद्द्ब्रवीमि वः मातरिश्वाऽब्रवीत्पुण्यमित्येतामोश्वराच्छू ताम् । अथ ते ऋषयः सर्वे दिवाकरसमप्रभाः श्रुत्वेमां परमां पुण्यां कथां त्र्यम्बकी ततः ॥३२२ भृशं चानुग्रहं प्राप्य हर्षं चैवाप्यनुत्तमम् | संभावयित्वा चाप्येनां वायुसूचुर्महाबलम् ऋषय ऊचुः ॥३२५ ॥३२६ समोरण महाभाग अस्माकं च त्वया विशो | ईश्वरस्योत्तसं पुण्यमष्टसं त्वौपसर्गिकम् तस्य स्थानं प्रमाणं च यथावत्परिकीर्तितम् | यो गन्धेन समृद्धं वै परमं परमात्मनः महादेवस्थ माहात्म्यं दुविज्ञेयं सुरैरपि । स्वेन माहात्म्ययोगेन सहस्रस्यामितौजसः यस्य भक्तेष्वसंमोहो ह्यनुकस्पार्थमेव च । ब्राह्मी लक्ष्मोः स्वयं जुष्टा या साइप्रतिमशालिनी ॥३२८ ॥३२७ ॥३२३ ॥३२४ भागों में विभक्तकर विविध प्रकार अति दुर्लभ उपभोग्य सामग्रियों को प्राप्तकर विविध भावों से भोगते हैं | वे सव स्वच्छन्द गमन करते हैं, सभी सिद्धियाँ उनको वशवर्तिनी है, दूसरे सिद्ध गण उन्हें प्रवुद्ध करते है । ऐसे परम ऐश्वर्यशाली एकादशरुत्र के गणों की संख्या शिवपुर में अनेक कोटि है । इन सवों के साथ देवदेव पार्वतीवल्लभ, भक्तहितकारी भगवान् महेश्वर आनन्द का अनुभव करते है |३१८-३२१ ऋषि वृन्द ! मैं सच कह रहा हूँ कि उन शिवपुर निवासी रुद्रगणों की एवं परम ऐश्वर्यमय भगवान् महेश्वर की विविध सम्भूतियों को अर्थात् सब की विविध रूपता को नहीं देख पाता । वे सब परस्पर अभिन्न हैं । स्वयं भगवान् के मुख से सुनी गई त्र्यम्बक की इस पुण्यकथा को मातरिश्वा वायु ने जब उन सूर्य के समान परम तेजोमय ऋषियों को सुनाया तो वे परम प्रसन्न हुए और अपने को परम अनुगृहीत माना | इस पुण्य कथा का अभिनन्दन करते हुए वे सब महाबलशाली वायु से वोले |३२२ - ३२४। से ऋषियों ने कहा- महाभाग ! आप सर्व समर्थ है। आपने ईश्वर के उस परम पुण्यमय सर्वश्रेष्ठ अष्टम औपसंगिक निवास स्थान का प्रमाण एवं अन्य परिचयात्मक विवरण हम लोगों को सुनाया है, जो परमात्मा की सुगन्ध से सर्वथा समृद्ध है | महादेव का माहात्म्य देवताओं को भी कठिनता से विदित होता है। वे अपने ही पराक्रम द्वारा अमित तेजस्वी सहस्रों अनुचरों की सृष्टि करनेवाले हैं, जो प्रभाव आदि में उन्हीं के समान है । जो भक्तों के ऊपर अनुग्रह करने के ही भक्तों के हृदय में सम्मोह ( अज्ञान ) का संचार नहीं करते। अनुपम शक्तिशालिनी ब्राह्मी एवं लक्ष्मी स्वयमेव जिसके