पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०६

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दशमोऽध्यायः ८७ सोपासङ्गतलत्रांश्च धन्विनो ह्यपर्वापणः । आसीनान्धावतश्चैव जुम्भिनश्चैव धिष्ठितान् ॥५० अध्यापिनोऽथ जपतो युञ्जतो ध्यायतस्तथा। ज्वलतो वर्षतश्चैत द्योतमानान्प्रधूपितान् ॥५१ बुद्धान् बुद्धतमांश्चैव ब्रह्मिष्ठाञ्शुभदर्शनान् । नीलग्रीवान्सहस्राक्षान्सर्वांश्चाथ क्षपाचरान् ॥५२ अदृश्यान्सर्वभूतानां महायोगान्महौजसः। रुदतो द्रवतश्चैव एवं युक्तान्सहस्रशः । t५३ अयातयामानसृजद्रुद्ररूपान्सुरोत्तमान्। ब्रह्म दृष्ट्वाऽब्रवीदेतन्मा स्राक्षीरीदृशीः प्रजाः ५४ स्रष्टव्या नऽऽसनस्तुल्या प्रजा नैवाधिकास्त्वया। अयःसृज त्वं भद्रं ते (*प्रजा वै मृत्युसंयुताः ॥५५ नाऽऽरप्स्यन्ते हि कर्माणि प्रजा विगतमृत्यवः । एवमुक्तोऽब्रवीदेनं नाहं मृत्युसमन्विताः ॥५६ प्रजाः स्रक्ष्यामि भद्रं ते) स्थितोऽहं त्वं सृज प्रजाः । एते ये वै मया सृष्टा विरूपा नीललोहिताः ॥५७ सहस्राणां सहस्र तु आत्मनोपमनिश्चिताः । एते देवा भविष्यन्ति रुद्र नाम महाबलाः ५८६ पृथिव्यामन्तरिक्षे च रुद्रनाम्ना प्रतिश्रताः। शतरुद्रसमाम्नाता भविष्यन्तीह यज्ञियाः ॥५e यज्ञभाजो भविष्यन्ति सर्वे देवयुगैः सेह। मन्वन्तरेषु ये देवा भविष्यन्तीह च्छन्दजाः ६० तैः सार्धमिज्यमानास्ते स्थास्यन्तीहह) युगक्षयात् । एवमुक्तस्तदा ब्रह्मा महादेवेन धीमता ६१ अतिकायशितिकण्ठ, नीलग्रीव, अन्नभोजी, मांसभोजी, घृतपायी, सोमपायी, अतिक्रोधी, धनुर्वाणादि नाना अस्त्रधारी आसीन, धावमान, जम्हई लेने वले, स्थित, अध्यापनशील, जप करने योग्य, ध्यान करनेवाले, ज्वलनशील वर्षेणशील, प्रकाशशील, धूप करने में असक्त, बुद्ध, बुद्धतम, ब्रह्मिष्ठ, शुभदर्शन, नीलग्रीव, सहस्रलोचन, सर्वाङ्गलोचन, रात्रिचारी, सबभूतों के लिये अदृश्य, महायोगयुक्त, स्थिर यौवन और महातेजस्वी थे। हजारहजार का दल बाँध कर वे सव रोदन और द्रवण कर रहे थे । रुद्ररूप सुरोत्तम की प्रजा सृष्टि देखकर ब्रह्मा ने कहा-आप इस तरह की प्रजा सृष्टि करें ।४५-५४। का न रुद्र आप कल्याण हो । आप अब अपनी तरह इस आकारप्रकार की प्रजाओं को मत उत्पन्न करे । आप मरणशील प्रजाओं की सृष्टि करें । मृत्यु रहित प्रजा कर्मानुष्ठान में प्रवृत्ति नहीं होती है। यह सुनकर नीललोहित रुद्र ने कहा—आपका कल्याण हो। हम मरणशील प्रजा की सृष्टि नहीं करते । हम इस कर्म से विरत होते है। आप ही प्रजा की सृष्टि करें । हमने जो इन नीललोहितविरूप और अपने समान हजारों प्रजाओं को उत्पन्न किया है, वे महाबलो देवगण भूलोक और अन्तरिक्ष में रुद्र नाम से प्रसिद्ध होकर यक्षीय देवों के मध्य में परिगणित होंगे एवं शतरुद्र नाम से विख्यात होंगे। सब युगों के साथ ये यक्षीय भाग का भोग करेंगे । प्रत्येक मन्वन्तर में छन्दः समुत्पन्न जो यीय देवता प्रादुर्भूत होंगे, उनके साथ यीय होकर ये रहेंगे ५५ महाप्रलयपर्यन्त ॥-६०३। धीमान् महादेव द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर ब्रह्मा अत्यन्त

  • धनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्थ: कृ. पुस्तके नास्ति ।