पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०७७

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१०५६ वायुपुराणम् अनेकविधदानानि यमाश्च नियमैः सह | योगधर्मा बहुविधाः सांख्या भागवतास्तथा भक्तिमार्गा ज्ञानमार्गा वैराग्यानिलनोरजः | उपासनविधिश्वोक्तं कर्मसंशुद्धिचेतसाम् ब्राह्मं शैवं वैष्णवं च सौरं शाक्तं तथाऽऽर्हतम् । पड्दर्शनानि चोक्तानि स्वभावनियतानि च एतदन्तच्च विविधं पुराणेषु निरूपितम् । अतः परं किमप्यस्ति न वा वोद्धव्यभुत्तमम् न ज्ञायेत यदि व्यासो गोपयेदथ वा भवान् । अत्र नः संशयं छिन्धि पूर्णः पौराणिको यतः सूत उवाच शृणु शौनक वक्ष्यामि प्रश्नमेनं सुदुर्लभम् | अतिगोप्यतरं दिव्यमनाख्येयं प्रचक्षते पराशरसुतो व्यासः कृत्वा पौराणिक कथाम् । सर्ववेदार्थघटितां चिन्तयामास चेतसि वर्णाश्रमवतां धर्मो मया सम्यगुदाहृतः । मुक्तिमार्गा बहुविधा उत्ता वेदाविरोधतः जोवेश्वरब्रह्मभेदो निरस्तः सूत्रनिर्णये | निरूपितं परं ब्रह्म श्रुतियुक्तविचारतः अक्षरं परमं ब्रह्म परमात्मापरं पदं पदम् । यदर्थं ब्रह्मचर्यादिवानप्रस्थयतिव्रतम् ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ धर्म, भक्तिमार्ग, ज्ञान मार्ग, वैराग्य मार्ग, अनिल, नीरज (?) विविध उपासनाएँ चित्त की कर्म संशुद्धि आदि का विधि समेत वर्णन किया गया है। ब्राह्म, शेव, वैष्णव, सौर, शाक्त, आर्हत, पड् दर्शनादि विविध विषयो का उन पुराणों में पर्यालोचन किया गया है। किन्तु हमारे मन में यह जिज्ञासा शेष रह जाती है कि इन उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त कुछ अन्य ज्ञातव्य बातें शेष रह जाती है या नही (?) भगवान् व्यास देव को अथवा आप को ऐसी कोई बात नही है जो ज्ञात न होगी अथवा किन्ही कारणों से आप लोग उसे छिपा रहे होंगे। इस विषय को लेकर हमारे मन में बड़ा सन्देह है, आप समस्त पुराणों के जाननेवाले परम् विद्वान् है, कृपया हमारी संशय निवृत्ति करे |१२-१८॥ - सूत वोले - शौनक जी ! इस परम दुर्लभ प्रश्न का उत्तर सुनिये, बतला रहा हूँ | यह अत्यन्त गोपनीय, दिव्यगुण सम्पन्न एवं जिससे किसी से कहने योग्य नहीं है । पराशर पुत्र भगवान् व्यासदेव ने समस्त वेदार्थों के सारभूत पुराणों की रचना जब कर चुके तव अपने चित में विचार किया कि इन पुराणो मे वर्णां- श्रम मर्यादा को मानने वालों के धर्मों का में भली तरह निरूपण कर चुका, वेदों के अनुसार चलने वाले अनेक प्रकार के मोक्षदायी मार्गो का निर्वाचन कर चुका, सूत्र निर्णय में जीव, ईश्वर और ब्रह्मा के भेदों का पर्यालोचन कर चुका, श्रुति प्रतिपादन युक्तियों से परम ब्रह्म का निर्णय कर चुका | १९-२२। वह परम ब्रह्म परमात्मा कभी विनष्ट होनेवाला नहीं है, वही परम पद है । उसो के लिए बड़े बड़े बुद्धिमान् ब्रह्मचर्य, गृहस्य,