१११६ वायुपुराणम् रौरव्ये चान्धतामिश्रे (स्त्रे) कालसूत्रे च ये गताः । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं तदाम्यहम् Xअसिपत्रवने घोरे कुम्भीपाकेषु ये गताः । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् अनेकयातनासंस्थाः प्रेतलोकं च ये गताः । तेषामुद्धरणार्याय इमं पिण्डं ददाम्यहम् अनेकयातनासंस्थाः ये नीता यमकिकरैः । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् नरकेषु समस्तेषु यातनासु च ये स्थिताः । तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् पशुयोनिगता ये च पक्षिकोटसरीसृपाः । अथवा वृक्षयोनिस्थास्तेभ्यः पिण्डं ददाम्यहम् जात्यन्तरसहस्रेषु भ्रमन्तः स्वेन कर्मणा । मानुष्यं दुर्लभं येषां तेभ्यः पिण्डं ददाम्यहम् दिव्यन्तरीक्षभूमिष्ठाः पितरो वान्धवादयः । मृता असंस्कृता ये च तेभ्यः पिण्डं ददाम्यहम् ये केचित्प्रेतरूपेण वर्तन्ते पितरो मम । ते सर्वे तृप्तिमायान्तु पिण्डदानेन सर्वदा ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥ ४५ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० पिशाचों से ग्रस्त होने के कारण जिनको मृत्यु हुई थी, ऐसे लोगों को उबारने के लिए में यह पिण्डप्रदान कर रहा हूँ। अपने घोर पाप कर्मों के कारण जो रौरख, अन्वतामिस्र, एवं कालसूत्र जैसे नरकों में घोर बातनाएँ झेल रहे हैं, उनको उबारने के लिए मैं यह पिण्ड प्रदान कर रहा हूँ ॥४१-४२॥ घोर असिपत्र वन तथा कुम्भीपाक जैसे नरकों में जो अपने पाप कर्मों के फल भोग रहे हैं, उनके उद्धार के लिए में यह पिण्डदान कर रहा हूँ । प्रेतलोक में जाकर अन्याग्य यातनाओं से सताये जाने वालों को उदारने के लिए मैं यह पिण्ड प्रदान कर रहा हूँ | यम दूतों द्वारा अनेक यातनाओं में जो पोसे जा रहे है, ऐसे लोगों को उवारने के लिए मैं यह पिंड प्रदान कर रहा हूँ । समस्त नरकों एवं सभी प्रकार को यातनाओं में अपने पाप कर्मों के कारण दुःख भोगने वालों को उबारने के लिए मैं यह पिंड प्रदान कर रहा हूँ १४३ - ४६। पशु की योनि में उत्पन्न हो चुके हैं, नीच पक्षी, कोट एवं सरकने वाले सर्प आदि योनियों में जिनका जन्म हो चुका है, मथवा वृक्षों को योनि में जो उत्पन्न हो चुके हैं - उन सब को उवारने के लिए मै यह पिंड दान कर रहा हूँ | अपने कर्मों के अनुसार अनेक सहस्र जातियों में उत्पन्न हो होकर जो दुःख भोग रहे है, जिन्हें मानवयोनि अब दुर्लभ हो चुकी है, ऐसे लोगों को उबारने के लिए मैं यह पिंड प्रदान कर रहा हूँ १४७-४८ दिव्य लोक, अन्तरिक्षलोक, एवं भूमिलोक में उपस्थित अपने बन्धुवर्गो एवं अपने पितरों को उधारने के लिए, जो कभी मृत्यु को प्राप्त हुए परन्तु संस्कार नही हुए, मैं यह पिंड दान कर रहा हूँ | जो हमारे पितरगण इस समय प्रेत रूप में वर्तमान हैं, वे हमारे इस पिंडदान से सर्वदा के लिए तृप्ति लाभ करें ।४९-५०। जो हमारे इस जन्म के वान्धव अथवा अबान्धव हैं, जो हमारे अन्य X एतदग्रेऽयं पाठः ख. पुस्तके स यथा--आब्रह्मस्तम्वपर्वतं यत्किचित्सचाऽचरम् । मया दत्तेन तोयेन तृप्यन्तु भुवनत्रयम् ॥ इति । ÷ अयं श्लोको नास्ति ख. पुस्तके ।
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