पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११४६

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एकादशाधिकशततमोऽध्यायः ११२५ ॥४३ नागाज्जनार्दनाद्ब्रह्मयूपाच्चोत्तरमानसात् । एतद्गयाशिरः प्रोक्तं फल्गुतीर्थं तदुच्यते पितामहं समासाद्य यावदुत्तरमानसम् । फल्गुतीर्थ तु विज्ञेयं देवानामपि देवानामपि दुर्लभम् ॥४४ क्रौञ्च पादात्फल्गुतीर्थं यावत्साक्षाद्गयाशिरः । मुखं गयासुरस्यैतत्तस्माच्छ्राद्धमिहाक्षयम् मुण्डपृष्ठान्नगाधस्तात्साक्षात्तफल्गुतीर्थकम् । आद्यो गदाधरो देवो व्यक्ताव्यक्तात्मना स्थितः ॥ विष्ण्वादिपदरूपेण पितॄणां मुक्तिहेतवे ॥४५ एतद्विष्णुपदं दिव्यं दर्शनात्पापनाशनम् । स्पर्शनात्पूजनाद्वाऽपि पितॄणां दत्तमक्षयम् श्राद्धं सपिण्डकं कृत्वा कुलसाहस्रमात्मना | नयेद्विष्णुपदं दिव्यमनन्तं शिवमव्ययम् श्राद्धं कृत्वा रुद्रपदे नयेत्कुलशतं नरः । सहाऽऽत्मना शिवपुरं तथा ब्रह्मपदे नरः ब्रह्मलोकं कुलशतं समुद्धृत्य नयेत्पितॄन् । *कश्यपस्य पदे आद्धी ब्रह्मलोकं नयेत्पितॄन् दक्षिणाग्निपदे श्राद्धी पितृन्ब्रह्मपुरं नयेत् । गार्हपत्यपदे श्राद्धी वाजपेयफलं लभेत् श्राद्धं कृत्वाऽऽहवनीये अश्वमेधफलं लभेत् । श्राद्धं कृत्वा सभ्यपदे ज्योतिष्टोमफलं लभेत् ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० ॥५१ ॥५२ मानस तक यह गया शिर कहा जाता है, उसी को फल्गुतीर्थ भी कहते हैं । ब्रह्मा के स्थान से लेकर उत्तर मानस तक विस्तृत फल्गुतीर्थ को देवताओं के लिये भो दुर्लभ समझना चाहिये । क्रौञ्चपाद से लेकर गयाशिर तक जो फल्गुतीर्थ है, वह गयासुर का मुख भाग है, इसी कारण से वहाँ पर किया गया श्राद्ध अक्षय फलदायी है।४३-४५। मृण्ड पृष्ठ गिरि का निम्न प्रदेश भी फल्गुतीर्थ है, वहाँ पर आद्य गदाधर भगवान् अपने व्यक्ता- अवस्थित हैं । पितरों को मुक्ति प्रदान करने के लिये वहाँ भगवान् विष्णु दि देवताओं व्यक्त स्वरूप के चरण चिह्न विद्यमान हैं | ४६ | वह दिव्य विष्णु पद केवल दर्शन करने से घोर पापों को नाश करने वाला है, स्पर्श एवं पूजन करने से भी पापों का नाश होता है वहाँ पर पितरों को दिया गया दान अक्षय फल कारक होता है । सपिण्ड श्राद्ध कर्म करनेवाला मनुष्य अपने साथ अपने सहस्र कुल वालों को भी दिव्य, अव्यय, कल्याणप्रद, अनन्त विष्णु पद को पहुँचाता है|४७-४८ रुद्र के चरण प्रदेश में श्राद्ध करनेवाला मनुष्य अपने सौ कुलों का उद्धार करके उन्हें शिवपुर पहुँचाता है। इसी प्रकार ब्रह्मा के चरण प्रदेश मे श्राद्ध कर्म सम्पन्न करनेवाला अपने सौ कुल के पितरगणों का उद्धार कर उन्हें ब्रह्मलोक को पहुँचाता है। कश्यप के चरण प्रान्त में श्राद्ध करनेवाला पितरों को ब्रह्मलोक पहुँचाता है, दक्षिणाग्नि पद प्रदेश मे श्राद्ध कर्म करनेवाला मनुष्य पितरों को ब्रह्मपुर पहुँचाता है। गार्हपत्य के चरण प्रदेश में श्राद्ध करनेवाला वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त करता है ।४६-५१। आहवनीय अग्नि प्रदेश में श्राद्ध करनेवाला अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है ।

  • इदमघँ न विद्यते ख. पुस्तके |