पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१३८

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एकोनविंशोऽध्यायः ११६ अथैकोनविंशोऽध्यायः अरिष्टनिरूपणम् वायुरुवाच ४ अत ऊध्र्वं प्रवक्ष्यामि अरिष्टानि निबोधत । येन ज्ञानविशेषेण मृत्यु पश्यति चाऽत्मनः १ अरुन्धती ध्रुवं चैव सोमच्छायां महापथम् । यो न पश्येत्स नो जीवेन्नरः संवत्सरात्परम् २ अरश्मिवन्तमादित्यं रश्मिवन्तं च पावकम् । यः पश्येन च जीवेत मासादेकादशात्परम् ३ वमेन्मूत्रं करीषं वा सुवर्णं रजतं तथा । प्रत्यक्षमथ वा स्वप्ने दश मासान्स जीवति अग्रतः पृष्ठतो वाऽपि खण्डं यस्य पदं भवेत् । पांशुले कर्दमे वाऽपि सप्त मासान्स जीवति ॥५ काकः कपोतो गृध्रो वा निलीयेद्यस्य मूर्धनि । क्रव्यादो वा खगः कश्चित्षण्मासानातिवर्तते ॥६ बध्येद्वयसपङ्क्तीभिः पांशुवर्षेण वा पुनः। .छायां वा विकृतां पश्येच्चतुः पञ्च स जीवति ॥७ अनश्न विद्युतं पश्येद्दक्षिणां दिशमाश्रिताम् । उदकेन्द्रधनुर्वाऽपि त्रयो द्वौ वा स जीवति ८ अध्याय १६ अरिष्टनिरूपण वायु बोले—इसके आगे अब हम अरिष्टों को कहते हैं उसको सुनिये । जिस ज्ञान विशेष द्वारा योगी अपनी मृत्यु को भी जान जाते हैं ।१। जो व्यक्ति अरुन्धती, पृ.व, सोम-छाया और महापथ को नहीं देखता है, वह एक वर्ष से अधिक नहीं जीता ।२। जो सूर्य को बिना किरणवाला और अग्नि को किरण सम्पन्न देखता है, वह ग्यारह महीने से अधिक नहो जाता है ।३। जो स्वप्न में या प्रत्यक्ष हो मल-मूत्र या सोना-चाँदी वमन करे, वह दस महीने से अधिक नही जीता है ।४। धूल या कीचड़ में जिसका पदचिह्न आगे या पीछे से खण्डित मालूम पड़े वह सात सहीने से अधिक नही जीता है ।५। जिसके सिर पर कौआ, कबूतर, गंध भी पक्षी या कोई मांसभोजी बैठ जाय, वह छ: महीने से अधिक नहीं जीता है ।६। जिसके ऊपर दस बीस कौए मंडराते रहे जो सहसा धूलिवर्षण से धूसरित हो जाय और जो अपनी छाया को विकृत देखें, वह चारपाँच महीने से अधिक नही जीता है ।६-७। दक्षिण दिशा में बिना मेघ के ही बिजली देखें और जल में इन्द्रधनुष देखे, तो वह दो-तीन महीनों से ज्यादा नहीं जीता है ।८। जल में या दपंण में जो अपने को नहीं देखता है या अपने प्रतिबिम्ब को बिना -