पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१५१

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

१३२ मार्जालीयं तु तत्कर्म यस्माद्ब्रह्मकल्पयत् । ततस्तु मध्यमो नाम कल्पोऽष्टादश उच्यते ॥३८ यस्मस्तु मध्यमो नाभ स्वरो धैवतपूजितः । उत्पन्नः सर्वभूतेषु मध्यमो वे स्वयंभुवः ३६ ततस्त्वेकोनवंशस्तु कल्पो वैराजकः स्मृतः । वैराजो यत्र भगवान्मनुर्वे ब्रह्मणः सुतः। ४० तस्य पुत्रस्तु धर्मात्मा दधीचिर्नाम धामिकः । प्रजापतिर्महातेजा बभूव त्रिदशेश्वरः ॥४१ अकामयत गायत्री यजमानं प्रजापतिम् । तस्माज्जज्ञे स्वरः स्निग्धः पुत्रस्तस्य दधीचिनः ॥४२ ततो विंशतिमः कल्पो निषादः परिकीतितः । प्रजापतिस्तु तं दृष्ट्वा स्वयंभूप्रभवं तदा ॥४३ विरराम प्रजाः स्रष्टुं निषादस्तु तपोऽतपत् । द्विव्यं वर्षसहस्र’ तु निराहारो जितेन्द्रियः ॥४४ तमुवाच महातेजा ब्रह्मा लोकपितामहः। ऊध्र्वबाहुं तपोग्लानं दुःखितं क्षुत्पिपासितम् ॥४५ निषीदेत्यब्रवीदेनं पुत्रं शान्तं पितामहः । तस्मान्निषादः संभूतः स्वरस्तु स निषादवान् ४६ एकविंशतिमः कल्पो विज्ञेयः पञ्चमो द्विजाः। प्राणोऽपानः समानश्च उदानो व्यान एव च ॥४७ ब्रह्मणो मानसाः पुत्राः पञ्चैते ब्रह्मणः समः । तैस्त्वर्थवादिभिर्युक्तैर्वाग्भिरिष्टो महेश्वरः ॥४८६ यस्मात्परिगतैर्गातः पञ्चभिस्तैर्महात्मभिः। स्वरस्तु पञ्चमः स्निग्धस्तस्मात्कल्पस्तु पञ्चमः ॥४€ द्वाविशस्तु तथा कल्पो विज्ञेयो मेधवाहनः । यत्र विष्णुर्महबहुभैषी भूत्वा महेश्वरम् ॥५० ग अठारहवें कप का नाम था मध्यम । जिसमें धैवत से भी श्रेष्ठ मध्यम स्वर उत्पन्न हुआ । ब्रह्मा की सृष्टि मे वह मध्यम नाम से ख्यात हुआ । उन्नीसवीं कल्प वैराजक कहलाता है । जिसमें ब्रह्मा के पुत्र वीराज मनु हुए। उन्हे दधीचि नाम का धर्मात्मा पुत्र हुआ । ये ही । अत्यन्त तेजस्वी अधिपति प्रजापति यजन कर गायत्री उनकी कामना जिससे दधीचि को पुत्रस्वरूप स्निग्ध स्वर उत्पन्न हुआ ।३८४२॥ रहे थे, कि ने की । वीस निषाद कल्प कहलाता है । प्रजापति ने उस स्वयम्भू-संजात निषाद को देख कर सृष्टि कर्म से हाथ रोक लिया । निषाद भी तपस्या करने लगा जितेन्द्रिय निषाद निराहार रहकर देवों के वर्षों से हजार वर्षों तक तप करता रहा ।४३-४४महातेजस्वी लोकपितामह ब्रह्मा ने तब उस से, जो कि निषाद तपस्या के कारण कैश, दुःखित, भूख प्यास से व्याकुलशान्त और हाथ ऊपर उठाये तपस्या कर रहा था; कहा कि 'निषीद' (बैठ जाओ) । इसलिये वह निषाद कहलाया और स्वर का नाम । भी निषाद ही हुआ ।४५-४६। इक्कीसवे कल्प का नाम पञ्चम है। इसमें ब्रह्मा को उन्हीं के समान प्राण, अपान, समानउदान और व्यान नामक पाँच मानस पुत्र हुए। वे अर्थों सहित स्तुति वचनो से महेश्वर कां स्तवन करने लगे। जिस कारण उन फाँचो महात्माओ ने पञ्चम स्वर से गान किया; इसलिये वह कल्प पध्वम कहलाया और उस स्निग्ध स्वर का नाम पञ्चम पड़ा ।४७-४९। बाईसव कल्प का नाम मेघवाहन जानना चाहिये । इस कल्प मे महाबाहु विष्णु ने मेघ के स्वरूप मे चर्मवसनधारी महेश्वर दिव्य सहस्र वर्ष धारण । को तक किया था।