पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१६५

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१४६ वायुपुराणम् श्वेतास्थिमांसरोमा च श्वेत्वश्वेतलोहितः । तेन नाम्ना च विख्यातः श्वेतकल्पस्तदा ह्यसौं ६४ मत्प्रसादाच्च देवेशः श्वेताङ्गः श्वेतलोहितः । श्वेतवर्णं तदा ह्यासीद्गायत्री ब्रह्मसंज्ञिता ॥६५ यस्मादहं च देवेश त्वया गुह्य पदे स्थितः। विज्ञातः स्वेन तपसा सद्योजातः सनातनः । सद्योजातेति ब्रह्म तद्गुह्मौ चैव प्रकीतितम् ।।६६ तस्माद्गुह्यत्वमापन्नं ये वेत्स्यन्ति द्विजातयः । तत्समीपं गमिष्यन्ति पुनरावृत्तिदुर्लभम् ॥६७ यदाऽहं च पुनस्त्वासं लोहितो नाम नामतः । स मत्कृतेन वर्णेन कल्पो वै लोहितः स्मृतः ॥६८ तदा लोहितमांसास्थिलोहितक्षीरसंनिभा िलोहिताक्षस्तनवती गायत्री गौः प्रकीर्तिता ६४ ततोऽस्य लोहितत्वेन वर्णस्य च विपर्यये । वामत्वाच्चैव योगस्य वामदेवत्वमागतः तथापि हि महसत्व त्वयाऽहं नियतात्मन । बिज्ञातः श्वेतवर्णेन तस्माद्वणोत्तमः स्मृतः |१७१ ततोऽहं वामदेवेति ख्याति यातो महीतले ।। ये चापि वामदेवत्वं ज्ञास्यन्तीह द्विजातयः । विज्ञाय चेमां रुद्राणीं गायत्रीं मातरं विभो ॥७२ सर्वपापविनिर्मुक्तो विरजा ब्रह्मवर्चसः । रुद्रलोकं गमिष्यन्ति पुनरावृत्तिदुर्लभम् ७३ ७० है । हमारी पगडी, माला, कपड़ा. अस्यि मांस, रोम स्वरु और रक्त भी श्वेत । हो गया है । हम श्वेत नाम से ही विख्यात हुए इसी कारण यह श्वेत यत्प कहलाया ६३-६४हमारे प्रसाद से इस समय देवाविप श्वेताङ्ग श्वेत लोहित एवं ब्रह्म नाम्नी गायत्री श्वेत वर्ण की हो गई है ।६५हे देवेश ! जिस कारण हम भी तुम्हारे साथ गुह्य पद में अवस्थित थे; इसलिये "अपनी तपस्या के प्रभाव से हम सद्योजत सनातन पुरुष के रूप में तुम्हारे । हमारी मूति गुह्म ब्रह्म के रूप में कही जाती है । इसलिये जो द्विजातं द्वारा जाने गये ।६६अभिनव गण हमारे उस गुह्य रूप को जानेगे, वे ब्रह्म का सामीप्य प्राप्त करेंगे, जहाँ जाने पर फिर जन्म ग्रहण नहीं करना पड़ता ।६७। जब हम लोहित नाम से विख्यात थे, तब हमारे वर्ण के अनुसार उस कल्प का भो नाम लोहित पड़ा 1६८) गोल पिणी गायत्री भी उस समय लोहित हुईमांस, आदि वर्ण वाली विख्यात । उसक। अक्षि और स्तन लोहित हो गये ।६६। उसने स्वयं लोहित वर्ग दूध की भtत रूप धारण किया। रंग के हेर फेर हो जाने से अर्थात् लाल रंग के हो जाने से और योग में भी वामता आ जाने से हम वामदेव हो गू किन्तु महासत्त्व ! आप हमे नियत चित्त से श्वेत वर्ण ही समझते रहें; इसी से हम वर्गोत्तम कहलाये। इसके बाद हमने महीतल मे वामदेव के नाम से ख्याति लाभ की ७०-७१३। हे विभो ! जो द्विजाति हमार वामदेवत्व को जानेगे और इस मुद्राणी गायत्री माता को जानेगे, वे सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर और ब्रह्मतुल्य तेजस्वी होंगे एवं रुद्रलोक मे सदा निवास करेगे ७२-७३ जब फिर हमारा शरीर घ' विरजस्क