पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१८५

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१६६ ।।४८ मा मनसोऽल्पोऽपि व्यघातोऽयं कथंचन । इत्येषाऽनुगतिवष्णोः कार्याणामौपसगिकी ४७ भूत्त यन्मयाऽनन्तरं कार्यं मयाऽध्यवसितं त्वयि । त्वां वा बाधितुकामेन क्रीडापूर्व यदृच्छया । आश द्वाराणि सर्वाणि घटितानि मया पुनः न तेऽन्यथाऽवमन्तव्यो मान्यः पूज्यश्च मे भवान् । सर्व मर्षय फल्याण यन्मयाऽथ कृतं तव ।। तस्मान्मयोच्यमानस्त्वं पद्मदवतर प्रभो १४९ नाहं भवन्तं शवनोमि सोढं तेजोमयं गुरुम् । स चोवाच वरं ब्रूहि पद्मादवतराम्यहम् ५० चिष्णुरुवाच पुत्रो भव ममारिघ्न मुदं प्राप्स्यसि शोभनाम् । सत्यधनो महायोगी त्वमीड्यः प्रणवात्मकः ।।५१ अद्यप्रभृति सर्वेश श्वेतोष्णीषविभूषणः । पद्मयोनिरितीत्येवं ख्यातो नाम्ना भविष्यसि । पुत्रो मे त्वं भव ब्रह्मन्सर्वलोकाधिप प्रभो ततः स भगवान्ब्रह्मा वरं गृह्य किरीटिनः एवं भवतु चेत्युक्त्वा प्रीतात्मा गतमत्सरः ५३ ५२ मन मे सोचा और नाभि में प्रवेश कर कमलनाल द्वारा बाहर निकल आया। हे विष्णु ! इससे आपके मन को जरा भी चोट न पहुंचे । कार्यों की परस्पर इसी प्रकार की स्वाभाविक गति होती है ।४५-४७ विष्णु चोले—हे प्रभु ! हमने आपके सम्बन्ध में जो कार्य किया है और हमारे द्वारा आपके प्रति जो अनुचित व्यवहार हुआ है, वह सिर्फ कौतुक वश ही । मैने क्रीड़ापूर्वक आपको बाँधना चाहा था और इच्छा वश सब द्वारा को तुरन्त ही बन्द कर दिया था । आप इसे मन मे न लावें । वास्तव मे आप हमारे मान्य और पूज्य है । हमने आपके प्रति जो कुछ किया है, उसे आप क्षमा कर दें । हे प्रभु ! मेरा अनुरोध है कि, आप कमल से उतर जायं क्योकि आप भारभूत तेजस्वी पुरुप हैं । आपका भार मै वहन नहीं कर सकता ।४८४१ ब्रह्म ने कहा--विष्णु ! वर मांगिये । मै इस कमल से उतर रहा हूँ |५० विष्णु चोले--शत्रुसूदन ! आप मेरे पुत्र हों यही मेरी इच्छा है, इसमें आपकी भी कीति बढेगी और आप मुखी होंगे । आप सत्यधन है, महायोगी हैं । पूज्य है, प्रणव रूप है । सर्वेश ! आज से अवेत पगड़ी आपके शिर को सुशोभित करेगी, और आज से आप पद्मयोनि नाम से प्रसिद्ध होंगे । ब्रह्मन् ! प्रभु ! सब लोक के अधिपति ! आप मेरे पुत्र बने ५१-५२किरीटी विष्णु के वर को ब्रह्मा ने स्वीकार कर लिया । प्रसन्न हो उन्होने हृदय का मात्सर्य भी छोड़ दिया और कहा 'ऐसा ही होग' ५३इसके अनन्तर