पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२२२

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एकोनत्रिंशोऽध्यायः २०३ इत्येष ऋषिसर्गस्तु सानुबन्धः प्रकीर्तितः । विस्तरेणाऽऽनुव्यं चाप्यग्नेस्तु शृणुत प्रजाः ॥३€ इति महापुराणे वायुप्रोक्ते ऋषिवंशानुकीर्तनं नामाष्टाविंशोऽध्यायः ।२८।। अथोनत्रिंशोऽध्यायः अग्निवंशवर्णनम् योऽसावग्निरभिमानी ह्यासीत्स्वायंभुवेऽन्तरे । ब्रह्मणो मानसः पुत्रस्तस्मात्स्वाहा व्यजायत ॥१ पावकः पवमानश्च पावमानश्च यः स्मृतः। शुचिः शौरस्तु विज्ञेयः स्वाहपुत्रास्त्रयस्तु ते निमंष्यपवमानस्तु शुचिः शौरस्तु यः स्मृतः। पावका वैद्युताश्चैव तेषां स्थानानि यानि वे ॥३ २ का विस्तार सुनिये । यह मैंने ऋषियों का वंशविस्तार कहा । अत्र और विस्तार के साथ अग्नि का वशविस्तार अविकल रूप से कह रहा हू सुनिये ।३७-३६॥ श्री वायुमहापुराण का ऋषिवंश-कीर्तन नामक अट्ठाईसवाँ अध्याय समाप्त ।।२८।। अध्याय २६ अग्नि-वंश-वर्णन स्वायम्भुव मनु के अधिकार काल में जो ब्रह्मा के मानस पुत्र अभिमानी अग्नि उत्पन्न हुये थे, उन्होने स्वाह पुत्रों को किया । उनके नाम थे पावक, पवमान या गावमान और शुनि । शुचि सौर से तीन उत्पन्न भी कहे जाते हैं ।१-२। मन्धन से निकली अग्नि पवमान है। सूर्यकिरणस्थ - अग्नि शुचि - है और वंशृत अग्नि