पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२३३

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२१४ तत्रैवाथ समासीन युक्ताऽऽत्मानं समादधे । धारयामास चाऽऽग्नेय धारणां मनसाऽऽत्मनः ॥५४ तत आग्नेयीसमुत्थेन वायुना समुदीरितः । सर्वाङ्भ्यो विनिःसृत्य बह्निर्भस्म चकार ताम् ॥।५५ तदुपश्रुत्य निधनं सत्या देवोऽथ शूलभृत् । संवादं च तयोर्गुह्वा याथातथ्येन शंकरः । दक्षस्याथ ऋषीणां च चुकोप भगवान्प्रभुः ।।५६ यस्मादवमता दक्ष मत्कृते नाम सा सती । प्रशस्ताश्चेतराः सर्वाः स्वसुत भी भिः सह १५७ तस्माद्वैवस्वतं प्राप्य पुनरेव महर्षयः। उत्पत्स्यन्ते द्वितीये वै मम यज्ञे ह्ययोनिजाः ।।५८ हुते वै ब्रह्मणा शक्ते चाक्षुषस्यान्तरे मनोः। अभिव्याहृत्य च ऋषीन्दक्षमभ्यगमत्पुनः भविता चाक्षुषो राजा चाक्षुषस्य समन्वये । प्राचीनवहषः पौत्रः पुत्रश्चैव प्रचेतसः ६० दक्ष इत्येव नाम्ना त्वं मायां जनयिष्यसि । कन्यायां शाखिनां चैव प्राप्ते वै चाक्षुवेऽन्तरे ॥६१ ५e दी उचचत्रे अहं तत्रापि ते विघ्नमाचरिष्यामि दुर्मते । धर्मार्थकामयुक्तेषु कर्मस्विह पुनः पुनः १।६२ यस्मात्त्वं मत्कृते ह्रसृषीन्व्याहृतवानसि । तस्मात्सर्ध सुरैर्यज्ञे न त्वां यक्ष्यन्ति वै द्विजाः ॥६३ हुत्वाऽऽहुति ततः कूर अपस्त्यक्ष्यन्ति कर्मसु । इहैव बरस्यसि तथा दिवं हित्वाऽऽयुगक्षयात् ॥६४ जिससे कि मैं फिर महादेव की ही पत्नी होऊं । इस तरह कह कर सती वही पर योगासन लगा कर बैठ गयी । मन ही मन उन्होंने अग्नि की धारणा को ५३-५४। उस धारणा से आग्नेयी वायु उत्पन्न हुई, जिसने समूची देह में आग भड़का कर उसे राख कर दिया । शूलधारी महादेव ने जब यह सुना और उस समाचार की सत्यता पर भी विश्वास हो गया, तब वे ऋषियों और दक्ष पर बहुत क्रुद्ध हुये ॥५५-५६ । उन्होने कहा- दक्ष ! तुमने जिस कारण मेरे लिये सती का तिरस्कार किया और अपनी दूसरी सब बेटियों का पतियों के साथ सत्कार किया; इसलिये तुम्हारे पक्षपाती अऋषिगण मृत्यु मुख में प्राप्त होगे एवं.वैवस्वत मन्वन्तर में मेरे द्वितीय यज्ञ से उत्पन्न होकर वे अयोनिज कहलायेंगे ५७५८/ चाक्षुष मनु के अधिकार काल में ब्रह्मा इन्द्र का यज्ञ करा रहे थे कि, ऋषियों को वैसा कहते हुये महादेव दक्ष के समीप पहुंचे और कहा—चाक्षुष मन्वन्तर मे ही चाक्षुष नाम का एक राजा होग, जो प्राचीनर्वाह© का ओर प्रचेता का पुत्र होगा । वही राजा तुम्हें वृक्षकन्या मार्षा के गर्भ से उस्पन्न करेगी और तुम्हारा नाम दक्ष ही रखेगा ।५६-६१॥ दक्ष बोले—हे दुर्मति ! मैं तुम्हारे धर्मार्थयुक्त कमै मे उस जन्म मे भी बारबार विघ्न उपस्थित कहँगा । जिस लिये तुमने मेरे कारण ऋषियो के प्रति क्रूरता का व्यवहार किया है; इसलिये द्विजगण यश में देवों के साथ तुम्हारी पूजा नही करेंगे । वे आहुति देने के बाद कर्म में यानी यज्ञकुण्ड मे जल छोड़ दिया करेगे और तुम स्वर्ग छोड़ कर इसी भूलोक मे युगक्षय पर्यन्त निवास करोगे ।६२-६४ ।।