पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२३४

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त्रिशोऽध्यायः २१५ रुद्र उवाच सर्वेषामेव लोकानां भूर्लोकस्त्वादिरुच्यते । तमहं धारयिष्यामि निदेशात्परमेष्ठिनः ।।६५ अस्यां क्षितौ वृता लोकाः सर्वे तिष्ठन्ति भास्कराः । तानहं धारयामीह सततं न तत्रऽऽज्ञया ॥६६ चातुर्वण्र्यं हि देवानां ते चाप्येकत्र भुञ्जते । नाहं तैः सह भोक्ष्यामि ततो दास्यन्ति ते पृथक् । ततो देवैः स तैः सार्ध नेज्यते पृथसिज्यते ६७ ततोऽभिव्याहृतो दक्षो रुद्रेणामिततेजसा । स्वायंभुवेऽन्तरे त्यक्त्वा उत्पन्नो मानुषेष्विह । ॥६८ कृत्वा गृहपति दक्ष ज्ञानानामीश्वरं प्रभुम् । दक्षो नाम महायज्ञः सोऽऽयजदैवतैः सह ६६ अथ देवी सती या तु प्राप्ते वै बस्त्रतेऽन्तरे । सेनायां तामुमां देवीं जनयामास शैलराट् या तु देवी सती पूर्व ततः पश्चादुमाऽभवत् । सहजता भवस्यैषा न तया मुच्यते भवः ।। यावदिच्छति संस्थानं प्रभुर्मन्वन्तरेष्विह । ७१ मरीचं कश्यपं देवी यथाऽदितिरनुनता। साध्यं नारायणं श्रीस्तु मघवन्तं शची यथा ॥ ७२ विष्णु कीर्ती रुचिः सूर्यं दसिष्ठं चाप्यरुन्धती । नैतास्तु विजहत्येतान्भतृन्देव्यः कथंचन । हवर्तमानकल्पेषु पुनर्जायन्ति तैः सह ७३ ७० रुद्र बोले- सब लोकों में यह भूलोक ही श्रेष्ठ कहा गया है । इसका धारण में परमेष्ठी की आज्ञा से ही कर रहा हूँ । इस क्षितितल में भास्करोपम लोक विराजमान है। उन्हें मैं सदा धारण किये रहता , वह कुछ तुम्हारी आज्ञा से नही ।६५-६६ देवों के बीच भी चतुर्वर्ण व्यवस्था है; पर वे सभी एक साथ ही बैठ कर खान-पान कर लिया करते हैं और मैं उनके साथ नही खाता; इसलिये मुझे पृथङ् किया जाता है । इसीलिये वे लोग देवों के साथ मेरी प्रश न कर पृथक् पूजा करते है ।६७। इस तरह अत्यन्त तेजस्वी रुद्र से शप्त होकर स्वायम्भुव मन्वन्तर के बाद मनुष्यलोक में दक्ष प्रजापति ने जस्म ग्रहण किया। अपने को ज्ञानवान् समर्थ और गृहपति जानकर दक्ष ने देवों के साथ मिल कर एक महायज्ञ आरम्भ किया। इधर वैवस्वत मन्वन्तर के आने पर शीलाधिराज हिमालय ने मेना के गर्भ से देवी सती को उमा के रूप में उत्पन्न किया ६८-७०/ वहो देवी जो पहले सती थी. पीछे उमा हुई। महदेव के साथ रहना ही व्रत है । वह कभी if उसका भी मन्वन्तर में महादेव को उसी प्रकार -नही छोड़ती, जैसे अनुब्रता अदिति देवी मरीच कश्यप को, लक्ष्मी नारायण को, शची इन्द्र को, रुचि सूर्य को, अरुन्धती वसिष्ठ को किसी भी तरह नही छोड़ती हैं । दूसरे फरुपों के लौटने पर भी ये देवियाँ उन्ही के साथ उत्पन्न होती हैं (७१-७३। इधर दक्ष प्रजापति भी