पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६६

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द्वात्रिंशोऽध्यायः २४७ यदेतद्रक्तवर्णाभं तृतीयं वः स्मृतं मया । त्रिजिह्व' लेलिहानं तु एतस्त्रेता युगं द्विजाः ।१५ अत्र यज्ञप्रवृत्तिस्तु जायते हि महेश्वरात् । ततोऽत्र इज्यते यज्ञस्तिस्त्रो जिह्वास्त्रयोऽग्नयः ।। इष्ट्वा चैतनयो विप्राः कालजिह्वा प्रवर्तते ॥१६ यदेतद्वै सुखं भीमं द्विजिद् रक्तपिङ्गलम् । द्विपादोऽत्र भविष्यामि द्वापरं नाम तद्युगस् ।।१७ यदेतत्कृष्णकर्णाभं तुरीयं रक्तलोचन । एकजिघं पृथु श्यामं लेलिहानं पुनः पुनः १८ ततः कलियुगं घोरं सर्वलोकभयंकरम् । कल्पस्य तु सुखं ह्य तच्चतुर्थं नाम भीषणस् १६ न सुखं नापि निर्वाणं तस्मिन्भवति वै युगे । कालग्रस्त आज चापि युगे तस्मिन्भविष्यति ॥।२० ब्रह्मा कृतयुगे पूज्यस्त्रेतायां यज्ञ उच्यते । द्वापरे पूज्यते विष्णुरहं पूज्यश्चतुर्वेपि ।।२१ ब्रह्मा विष्णुश्च यसल झालस्यैव कलास्त्रयः । सर्वेष्वेव हि कालेषु चतुसृतिर्महेश्वरः २२ अहं जनो जनयिता बः कलः कालप्रवर्तकः । युगकर्ता तथा चैव परं परपरायणः २३ तस्मात्कलियुगं प्राप्य लोकानां हितकारणत् । अभयार्थं च देवानामुभयोर्लोकयोरपि २४ तदा भवश्च पूज्यश्च भविष्यामि सुरोत्तमाः । तस्माद्भयं न कार्यं च कलि प्राप्य सहौजसः ॥२५ एवमुक्तस्ततः सर्वा देवता ऋषिभिः सह । प्रणम्य शिरसा देवं पुनरूवुर्जगत्पतिम् ।।२६ जो लाल रंग का, लपलपाती तीन जिह्व वाला दूसरा मुख कह गया है, वह त्रेता युग है । इस युग में महादेव के द्वारा ही यज्ञ करने में लोगों की प्रवृत्ति होती है । इनसे ही यज्ञ का प्रारम्भ होता है । इन्हें तीन जिह्वाएँ हैं और तीन अग्नि । ये ही अग्नि काल की जिह्वाएँ हैं ।१५.१६ यह जो दो जिह्व वाला भयङ्कर लाल और पिङ्गल वर्ण का मुख है. वह द्वापर नाम का युग है। इस युग में हम दो पैर वाले होंगे । यह जो चौथा काले रङ्ग का एवं लाल आँखों वाला मुंह है, जिसमें काले रंग की एक मोटी जिह्वा बारबार लपलपा रही है, वह सम्पूर्ण लोकों को भयत्रस्त करने वाला घोर कलियुग है । यह कल्पों का भीषण चौथा मुख है ।१७१९॥ इस युग में न सुख है और न मुक्ति एव प्रजाजन भी इस युग में काल से ग्रस्त होकर रहेंगे । कृतयुग में ब्रह्मा पूजित होते हैं, जैता में यज्ञ, द्वापर में विष्णु और मैं चारों युगों में पूजित रहता हूँ । ब्रह्मा, विष्णु और यज्ञ ये काल की तीन कलाएँ या अंश है; किन्तु चार मूत वाले महेश्वर सभी कालों में हैं ।२०२२ । मैं ही जन हैं और आप लोगों का उत्पादक भी मैं हूँ । मैं ही काल हूँ और काल का प्रवर्तक भी । मैं ही युगों का करने वाला, परम एवं श्रेष्ठ हुँ ।२३। इसलिये कलि युग के आने पर सांसारिकों के कल्याण के लिये और देवों को अभय देने के लिये मैं दोनों लोकों में मंगलकारक और पूजनीय रहँगा । हे महाबली देवगण ! आप लोग कलियुग को देखकर मत डरें । ऋषियों के साथ उन देवगणों से जब महदेव ने इस प्रकार कहा, तब उन लोगों ने सिर नवाकर महादेव को प्रणाम किया और कहा २४-२६॥